[avatar user=”vibha” size=”98″ align=”center”]Vibha ji[/avatar]
ये कैसी प्रीत प्रिय……….
जो तुमसे होने लगी है
आभा अधिक क्यों छाने लगी है
बिन निखार निखरने लगी हूँ
रंगी हूँ जबसे तेरे प्रीत के रंग,
बिन साज श्रींगार के ही संवरने लगी हूँ
ये कैसी प्रीत प्रिय
आते-जाते ख़्वावों में
सब खयाल तुम्हारे ही आने लगे हैं
बिन नींदों के ही रेश्मी ख़्वाब बुनने लगी हूँ
ये कैसी प्रीत प्रिय
ये कैसी महक प्रिय
बिन इत्र के ही महकने लगी हूँ
ये कैसी प्रीत प्रिय
लगन तेरे नेह का आंखों में छाने लगा है
बिन पीये ही हाला मन क्यों बहकने लगा है
ये कैसी प्रीत प्रिय
है शीत में ऊष्मीय एहसास महकती हवाओं सी प्रसरित
तेरी महक़ी साँसों में
मद्धिम-मद्धिम पिघलने लगी हूँ
ये कैसी प्रीत प्रिय….