श्रद्धा पुष्प

यादों के जंगल में
पतझड़ की कभी जब शाम होगी
तब तुम तो नहीं तुम्हारी याद होगी
हर पल तुम्हारी बात होगी
बियाबान में भी तुम्हारी मुस्कान होगी
तुम्हारी जिंदादिली की बात होगी
कोई सुने न सुने तुमसे
हमारी बात होगी
तुमसे ही नव प्रात होगी |

-- जी.पी वर्मा--

हम और तुम
हमसफर थे,
मुसाफिर थे
साथ थे।
कुछ दूर चले,
तुम छूट गई
मैं रह गया
मुसाफिरखाना उजड़ गया।
बदल गया
मैं जमीं पर
तुम अनन्त में
खो गई।
पर यकीं है
फिर मिलेंगे
मुलाकात होगी
नई जिन्दगी की
शुरुआत होगी
फिर किसी
नए मोड़ से।
यही आस अब
शेष है
यही आस अब बनी हुई है।

-- जी0पी वर्मा--

वह भी अजब मंजर था -
देखते नहीं -
देखना पड़ा था ।
तुम लेटी थीं
आँखे मूँदे
मन्द मन्द मुस्काती सी
मानो तुमने सोखा लिया था
गहरा पीड़ा सागर।
हम बैठे थे इर्द-गिर्द
खामोश तुम्हारे।
रात शान्त ग़मगीन बहुत थी
सूना सा आकाश खड़ा था-
तारे भी थे
चंदा भी था
लेकिन रूप मलीन लिए ।
वह गमले
वह पौधे
तुमको जी से प्यारे थे, जो
गम्भीर एकटक खड़े हुए थे
झुकी हुई उनकी सब शाखें
झुके झुके से उनके पात।
शोकाकुल सब देख रहे थे
विदा तुम्हारी
अगली प्रात।
प्रात हुआ
तुम चली गईं
तुमको रोक न पाए हम
लेकिन तबसे
लिए उदासी
विधु किरण नित आती है
शिशिर, ग्रीष्म हेमन्त जुदा है
पतझड़ ही बस
आ ठहरा है
कल के सुन्दर कानन में

-- जी0पी वर्मा--

वही रास्ते
जिन पर
साथ चले थे हम-
हैरान हैं
रोक-रोक कर मुझको
पूछा करते हैं
हरबार
कहाँ है हमसफर?
कुछ कहता पर
रूक जाता हूँ
कैसे कहूँ
तुम नहीं रहीं अब।
पर मिलोगी
किसी जनम में
किसी मोड़ पर
फिर चलेंगे
साथ हम-तुम।
पर कैसे दिलाऊँ
उन्हें यकीं
पागलपन के सपने पर
पागलपन के अम्बर पर।

-- जी0पी वर्मा--

इंद्रधनुषी सपनो को-
अग्रिवाण लगा |
कैसे कहाँ से ?
खामोश यह वाण लगा |
प्राण जीतने की बाज़ी में
तुम्हारा प्राण लगा |
न तुम समझी न मैं समझा
पल में सपना बिखर गया-
किर्च बनकर
देखा भी न गया
आँखें खोलकर |

— जी0पी वर्मा–


सतरंगी
मुस्कान
आज भी
तुम्हारी फोटो पर है-
वह लगी जो
मेज के कोने पर |
जिसे खींचा  था
तुम्हारी पड़ोसन ने
तुम्हारे सींचे
पौधों के बीच |
अब फोटो को
मैं सजाया करता हूँ
दो गुलाबो से |
वह सजे रहते है
सूख जाने तक |
सिमट जाते हैं
पीपल के तले |
मैं इतने से
खुश हो लेता हूँ
सोच कर
तुम देखती होगी
मेरी अपनी मजबूरी
समझती  होगी
और पुन: मिलान की
राह  भी तकती होगी ।

— जी0पी वर्मा–

प्रिय,
जीवन को तुमसे अर्थ मिला
तुमसे ही जीना सीखा था -
तुमसे ही लिखना सिखा था -
तुमसे  सीखी कविता मैंने
भाषा,
शैली,
शब्द,
भाव,
सब दिए तुम्ही ने |
मैं तो मूक
कलम था -
जो तुमसे केवल
मुखरित था -
जो तुमसे ही -
संचालित था |
अभी
ऊर्जा
शेष पड़ी जो
मुझे चलती-
मुझे दिखती-
राह सृजन  की-
जिसे अधूरा
छोड़ गई तुम |
संपूर्ण प्रेरणा स्त्रोत तुम्ही हो
करुण वेदना प्रहरी बन जो
हर पल इंगित करती हो
मुझको इंगित' करती हो |
सपनो से कही दूर
शून्य तक
प्रति पल
मुझको मिलती है |

— जी0पी वर्मा–

जीवन - नद  के
कल कल का
श्रृंगार
पुष्प के पौधें हैं-
जो लगे तुम्हारे हाथों
अपने छज्जो पर ।
कितने ही उनमे
माली ने बदल दिए
मौसम के साथ-
और नए लगा दिए|
वह खिल रहे है
भले लग रहे है ।
मगर जिस माली ने
तुम्हे बदला
अब वह
तुमसा कोई पुष्प
लगा न सका
इस जीवन बगिया में ।
फिर न जाने
उसने ऐसा क्यों किया ?
यह जानते हुए की
वह अनाड़ी है,
कमजोर,बेजुबान,
बहरा और
मजबूर भी हैं ।

जी0पी वर्मा

तुम स्वप्नों की मलिका
मैं
सपनों का सौदागर -
पर
रास न  आया
स्वप्नों का
यह व्यापार तुम्हें |
तुम छोड़ -
इसे फिर
चली गयी -
उस देश
जहाँ बस -
सपने केवल बनते है ,
न बिकते हैं,
न लुटते हैं,
हर कोने में
नील गगन के
विचरण  केवल करते हैं ।

-- जी.पी वर्मा--

तुम्हारे जज्बे ने सिखाया , हिम्मत न तोडना |
भले ही हो तय, पल - पल में साथ छूटना ||
वक्त को भी रोकना, पड़े तो रोक लेना |
भले ही हो तय , दो पल में दम तोडना ||

श्रेयस जायसवाल

कौन कहता है आज हमारे बीच नहीं
वो तो नश्वर था ,
सच तो आज
आप है यही |
दिया जो मौका आपने
तो मैंने भी कदम बढ़ा लिया ,
देकर आशीष आपने
यहाँ आज बुला लिया |

ऐसी सोच की
हर सोच ने अपना लिया ,
आज राष्ट्र के गौरव को फिर से यहाँ सजा दिया |

आते हैं जाते हैं
उधेड़ बुन में रह जाते है ,
कुछ आप जैसे भी हैं ,
जो नई राह दिखाते हैं |

ऐसे महान व्यक्तित्व ही
सदियों तक याद किये जाते हैं

  • पूजा पाराशर ( चेन्नई )

लोग जीते है जहाँ में बस जीने के लिए
तुम जिये ऐसे की मौत को भी जीवनदान दे गये
अड़े  खड़े  थे पर्वत जो तुम्हारी रहा में
झुक गए आप,विनम्रता का ऐसा आयाम दे गए
मधुमास का सौरभ लुदाया हम सभी के साथ में
धाम,बरखा,जाड़ा सब कुछ अकेले सह गये
देखने को सिकन जब ,सब मुख तुम्हारा ताकते
तब जीवनी शक्ति से भरी तुम सभी को अपराजित मुस्कान देती
तुमको पाया तो दुनिया हमारी कद्रदान हो गयी
खो कर तुमको,औरो की क्या बात करें
खुद से खुद की पहचान गई
याचना मैंने नहीं की फिर भी तुमने क्या क्या दिया
साथी ,सलाहकार ,सखा क्या कहूँ
गुरु हो मेरे तुम शिष्य मई शत शत नमन तुमको
बस यही रिश्ता हमारी शान बन गई

--डॉ. विजय लक्ष्मी पाण्डेय