[avatar user=”vibha” size=”98″ align=”left”]Vibha Pathak[/avatar]जीना है मुझको जीना है
जीवन गरल विष पीना है
मन रन से मनयुद्ध जीतना है
फटे हाल हर नातों को सीना है
रूठें रूठें से है अरमान उन्हें मनाना हैं
फीके पड़े चाव पकवान पकाना है
मिले तुष्टि और पुष्टि ऐसी भूख जगाना है
बोझिल है ममता के कंधे उनकी ओट बनना है
मंद हुए क़दमताल जिनके उनमें दम ओज भरना है
नहीं कहना कि चलना नहीं अब
अभी तो चलना सीखना है
रुक कर किसी को क्या मिला है
चलकर ही तो कुछ पाया है
कहतें हैं सब तोड़ो मोह को पर
मोह ने ही तो सब कुछ जुड़वाया है
माना साथ नहीं जाना है कुछ पर
फ़क़ीर बन कहाँ रह पाना है
बनने को तो बन जाओ मस्त मौला
पर बिन दानापानी जुगाड़ के रातों की नींद भी उड़ाना है
है सांस तभी तो आस है पर इस आस के लिए
एक उजाले का अथक दीया जलाना है
ढलती है सांझ क्योंकि अगली सुबह को बुलाना है
जीना है मुझको जीना है
जीवन गरल विष पीना है