
क्या हो ,कौन हो तुम
क्यों बरसों बाद …आज भी …
तुम्हारा ज़िक्र मेरे रुख्सार में..
लाली खोज लेता है ..
क्यों आज भी तुम्हारा नाम ..
यकायक पलकें झुका देता है ..
क्यों आज भी तुम्हारा तसव्वुर
अपनी ही हथेली को..
हौले से दबा देता …
क्यों आज भी तुम्हारे कहीं न होने पर भी ..
हर तरफ तुम्हारा अक्स है…..
हर ज़र्रा …तुम्हारा अहसास देता है ..
क्यों आज भी मेरा वजूद बस …
तुम सा लगता है..
क्या हो …कौन हो तुम .. ..
क्यो आज भी..