थकते, खपते, भूख से तड़पते

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थकते ,खपते, भूख से तड़पते,
कभी खिलौनों, कभी मिठाई ..की
दुकान को हसरत से तकते
नाजु़क नाजु़क कंधों पर..
पत्थर सी जि़म्मेदारियांँ रखते हैं ,
नुक्कड़ की चाय की दुकान में,
काम करने वाले ‘छोटू’ …
अक्सर अपने परिवार के,
‘बड़े’ होते हैं !
वक्त से पहले, सब कुछ समझते,
आंँखों में सपने आसमान के सजते,
ज़मीन पर पांँव जमाकर रखते,
पर बचपन क्या है..
यह कभी नहीं समझते.
नुक्कड़ की दुकान पर ,
काम करने वाले ‘छोटू’..
अक्सर अपने परिवार के
‘बड़े’ होते हैं !

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