अलिखित की चुभन और अस्वीकृति के दाग

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जितना लिख रहा हूं :रोज अस्वीकृत हो जाने के द्वंद्व
अंजुरी भर धूप के रिसते कणों की
आवाज़ है
बिना छत के मकान की कच्ची जमीन पर
गिरे धूप के कणों के अलसाए स्वर

जितना लिखना चाहता था: कि समा सके
तुम्हारी अलक्त आंखों के
चिर स्थायी सूनेपन में
अपनी अपारता के विलक्षण अनुभव से
भर दे नयन के कूप गहरे
मेरे स्याह संकुचित भाल पर ढूलक आएं
दो अश्रु बिंद कि जल जाएं
मुक्ति के प्रयास सारे .

जो लिख नहीं पाया : वह अभी के एक मौन क्षण की तरह
रह गया कि जैसे रह जाती हैं
: मैट्रिक के बाद गांव में किशोरियां
पीले पड़ चुके कागज की रोशनी सहारे
ढह गया किशोर कल्पनाओं का करुण
छोटा सही एकमात्र घर

अलिखित अकथित के शेष अंगारों की आग में
काटता हूं: जीवन के अमूल्य सबसे सुंदर दिन
कि जैसे उर्वशी ने काटा हो समय
बहुत बहुत हिंसा से अंतर्मन की
सुनता हूं अलिखित : कामरेड !आजादी चाहिए
इस चुभन से बार बार अस्वीकृत होने
के गर्म काले दाग से
कामरेड! देखा है जला हुआ कागज
बस वैसे ही अलिखित की तड़प और और अधिक
दिन दिन क्षण क्षण हर आज में…
कामरेड!
बने रहना चाहिए बहुत कुछ अलिखित
कि लगे से स्वयं को : मुझमें कुछ अच्छा बाकी भी है

  • मौसम

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