फिर आज हमारी भारत माँ के आँचल का रंग लाल हुआ।
फिर आज नीच हरकत करके, आतंकवाद विकराल हुआ।
फिर आज शान्ति के दूतों का, शोणित खल ने खौलाया है।
फिर आज आक्रमणकारी ने, सोते सिंह को उकसाया है।
चालीस शहीदों की दुर्गति का, भीषण जवाब उनको देंगे।
जितने टुकड़े बिखराए हैं, उतने करोड़ बलियाँ लेंगे।
भारत का है इतिहास साक्ष्य, हम प्रथम वार न करते हैं।
पर हमलावर के चेहरे पे, मुँहतोड़ तमाचा जड़ते हैं।
जो अश्रुपूर्ण सन्नाटा है, वह दावानल बन जाएगा।
हर आँख से टपकेगा लावा, हर हाथ वज्र बन जायेगा।
हो जाएगा साम्राज्य भस्म, आतंकवाद के पोषक का।
मिट जाएगा नामोनिशान, हर हिजबुल, जैश मोहम्मद का।
हाँ समर भयंकर अब होगा, ये विश्व सकल तैयार रहे।
वो भी घेरे में आएगा, जिसने विरोध के शब्द कहे।
न कूटनीति, न राजनीति, न अर्थनीति की बाधा हो।
अब केन्द्र शंख का नाद करे, और पूर्ण समर्थन उसका हो।
उन वीर शहीदों की आँखें, अम्बर से हैं ललकार रहीं।
कब तक लाशों पर रोएँगे, कब तक आएगा ज्वार नहीं।
उनके बच्चों की चीखों का अब कैसे मोल चुकाएँगे?
उनकी विधवाओं के सन्मुख हम क्या मुँह लेकर जाएँगे?
कैसे समझाएँगे उनको, क्यों हम प्रतिशोध नहीं लेते?
कैसे गीदड़ की रक्षा में, बलि गए सिंहनी के बेटे?
कैसे थोथे वादे करके, वीरों को मुँह दिखलाएँगे?
यूँ लोकतंत्र की आड़ लिए, कबतक हमला टलवाएँगे?
युद्ध अवश्यम्भावी है, ये आज नहीं तो कल होगा।
जो आज नहीं प्रतिशोध लिया, तो अरि का दम्भ प्रबल होगा।
पक चुका बहुत लावा दिल में, अब बंध खोल दें, बहने दें।
जो रणचण्डी की भाषा है, अपनी सेना को कहने दें।
सेना को दे दें खुली छूट, फिर भारत-पाक एक होगा।
हर आतंकी की छाती पर, भारत का झण्डा लहरेगा।
जब गरजेंगे युद्धक विमान, तोपों के मुँह खुल जाएँगे।
भगदड़ होगी रिपुसेना में, कायर चिथड़े हो जाएँगे।
निर्भीक हिन्द की जय कहकर, सब सीमाओं को पार करें।
अब हाड़ कँपा दें दुश्मन के, नाहर बनकर हुँकार भरें।
ऋण वीरों का अब लौटा दें, अत्याचारी का नाश करें।
भारत माँ के आँसू पोछें, कर्तव्यों का अहसास करें।
कर्तव्यों का अहसास करें।
कर्तव्यों का अहसास करें।
~संत कुमार दीक्षित~