शिक्षक हूँ, शिक्षा की गरिमा पुनः बढ़ाने आया हूँ।
ज्ञान-रश्मियों से भव का तम आज मिटाने आया हूँ।।
जिनमें वसुधा एक कुटुम है, जिनमें नारी पूज्या है।
जिनमें मातृभूमि का दर्जा जाति-धर्म से ऊँचा है।
ऐसे पावन वाक्यों का, निहितार्थ बताने आया हूँ।।
(ज्ञान-रश्मियों से भव का तम…)
दान-दया-तप के सूत्रों का तुम निशि-दिन पालन करना।
अहंकार-आसक्ति-क्रोध का संयम से मर्दन करना।
भावी आत्मसमर का दर्पण तुम्हें दिखाने आया हूँ।।
(ज्ञान-रश्मियों से भव का तम…)
पार करो नभ की सीमाएँ, त्वं प्रकाश फैले चहुँओर।
सकल कलाओं, विज्ञानों का छूलो जाकर अंतिम छोर।
शिष्यों को विजयी उड़ान का मर्म सिखाने आया हूँ।।
(ज्ञान-रश्मियों से भव का तम…)
~संत कुमार दीक्षित~