[avatar user=”vibha” size=”98″ align=”left”]Vibha Pathak[/avatar]ज़िन्दगी जंग है
न मानो तो भंग है
मान लो तो रंग है
चुन लो तो ढंग है
न चुनो तो बेढंग है
बुन सको तो तरंग है
न बुनो तो कटी पतंग है
दूसरों की सुनो तो पैबंद है
अपनी ही सुनो तो मलंग है
अपनी वाणी डंका संग है
गैरों की बोली ताला बंद है
करते जो बड़ों का वंदन है
कभी करते नही वो क्रंदन है
किया न गर संबंधों का खंडन है
निश्चय ही आँगन बजे मृदंग है
जिसने किया हाथ मुट्ठी बंद है
उसका हाथ हुआ सदा तंग है
कर लो मति गर संग है
पथ जीवन सतरंग है
मन हर्षित नहीं कंज है
उर कमल खिलें तन गंग है
हो लिए साथ जब संत है
उस राह का हुआ न अंत है
निर्बाध जीवन हुआ वसंत है