कुदरत और इंसान

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एक आसमांं तले सारा जहां

जहां में एक से दिन औ रात,

एक सी धूप छांव बरसात

एक सी हवाएं , एक से पल

सबकी प्यास बुझाता एक सा जल

एक चांद से जगमग सारी दुनिया

एक सा नूर रब ने सबको दिया

कुदरत ने किसी को छोटा-बड़ा न आंंका

सब पर एक से नियम, एक सा ख़ाका

न किसी को ज्यादा मिला, न किसी को कम

फिर भी न दूर हुए आदमी के गम।

आदमी ने हर पल स्वार्थ ही साधा

उसका जोड़-तोड़ बना जीवन की बाधा

उसने धन जोड़ा, इच्छाओं से मन जोड़ा

बलवान से संबंध जोड़ा

केवल जोड़ ही नहीं, उसका तोड़ भी निराला था

वो खुदा से दूर दौलत मेंं मतवाला था

तोड़ने में उसने सब हदें कर दी पार

तोड़ दिया विश्वास, तोड़ दिए परिवार

हा! जीवन में नित जटिलता जोड़ता चला गया

इस भांंति वो खुद को तोड़ता चला गया

इस भांति वो खुद को तोड़ता चला गया ।।

मोहिनी तिवारी

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