देखो वो कोमल झील कतरा कतरा बहती रही |
फुहारो के मलमली दुपट्टे से वो साहिल को पाती रही |
टूटे उस गुलिस्तां से अपना आशियाना बनाना आसान न था,
कोमल और मुलायम होकर भी अपना दामन मेह्का ती रही |
उम्मीद की किरण बनकर उसने जीवन को कायम रखा,
आहिस्ता आहिस्ता पत्थरों से भी अपना रास्ता आज़माती रही |
इस सफर की राह मे काफी प्रश्ना और ख्याल आए,
सुन्दरता के काफी रूप रंग और आकार होते है,
तो क्यू मुझे रंग के करण जलाया गया,
क्यू दहेज प्रथा मे मेरा अस्तित्व मिटाया गया,
क्यू पैदा होते ही धरती की गोद में सुलाया गया,
क्यू देवी की पूजा कर के भी मुझे सतया गया,
क्यू बेटी को बेटे से नीचा दिखाया गया,
क्यू मुझे मेरे कपड़ों से मेरा चरित्र समझाया गया,
क्यू भारत की माँ बनकर मुझे सूली पर चढ़ाया गया |
वक्त की लहरों का यू असर हुआ की ,
दिल की कश्ती फिजाओं में बहने लगी |
दासता ये मशहूर की लिखे हुए को मिटाया नही जा सकता |
पर ये न भूल की ज़िन्दगी के सागर मे ,
तू ही वो कश्ती और तू ही वो दरिया है ,
तो क्या वो हसरतें जिसे पाया नही जा सकता |
हर सुबह जब सूरज बदस्तूर अपनी इनायत बिखेरता है,
तो क्या वो लौ है जिसे जलाया नही जा सकता |
ये ज़रूरी नही की हर लम्हे के
सही या गलत दो पहलू हो,तो क्या उस लम्हे में
अपना नूर आजमाया नही जा सकता |
हर लड़ाई की हार मे एक बड़ी जंग की जीत
का पैगाम छुपा है, ये कोमल झील आज दरिया बनकर ,
पूरी दुनिया को अपनी दासता सुनाती रही |
हे कोमल नारी तू सदैव अपनी शक्ति का परचम लेहराती रही |