[avatar user=”vibha” size=”98″ align=”left”]Vibha Pathak[/avatar]कितना प्रेम करना चाहिए
एक प्रेम को सिद्ध करने के लिए
कितना अर्पण करना चाहिए
एक समर्पण की मर्यादा के लिए
कितना तड़पना चाहिए
एक क्षुधा की तृप्ति के लिए
कितना क़दम बढ़ाना चाहिए
एक महत्वाकांक्षी के लिए
कितनी कड़वाहट निगलनी चाहिए
एक सोम के लिए
क्या ?मीरा बन बिषपायी बने
या सीता बन दें अग्निपरीक्षा
गर इतने से भी प्रेम की
परीक्षा हो जाती तो कोई
आश्चर्य की बात नही
किन्तु इतना होने के उपरांत भी
गर प्रेम पर प्रश्नचिन्ह ?लगे तो
निश्चय ही प्रेम का वास्तविक रुप
अंधकारमय कूप मंडूप है
— विभा पाठक