बीता युग कंचन कोटि काल,
बीता प्रचंड अंधड़ कराल,
बीती मधुवन की नवल निशा,
बीती दिनकर की प्रथम उषा,
बीती परिणय की मधुर घड़ी,
बीती विरह की अश्रु लड़ी,
यूं बीत गया संसार सकल,
पर नहीं मिला मानव का हल,
हैं प्रश्न आज भी वहीं खड़े,
आखिर मानव किस ओर बढ़े?
किस ओर ज्ञान हो जायेगा,
किस ओर अहम् खो जायेगा,
किस ओर खिलेंगे कली- सुमन,
किस ओर बहेगी प्रेम तरंग,
किस ओर मुक्तिपथ पायेंगे,
किस ओर भटक न जायेंगे,
हैं सघन सूक्ष्म जंजाल बड़े,
आखिर मानव किस ओर बढ़े?
किस ओर अमिट इतिहास गढ़े ?
आखिर मानव किस ओर बढ़े ?
आखिर मानव किस ओर बढ़े….??
~ मोहिनी तिवारी ~