अंधेरे में…

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अरसे का इक दर्द लम्हे लम्हे में बांट रहे हैं
हम ये किसके गुनाहों की सजा काट रहे हैं

हमे तो समंदर भर प्यार मिला था विरासत में
नई आँखों में खुन है अब,लोग ये क्या बांट रहे हैं.

हमने मुफलिसी से इल्म सीखकर गुनाह कर दिया
हम भूखे है अपने हिस्से की रोटियाँ बाँट रहे हैं.

सुना है वो इसी रास्ते निगाहें करके गुजरेंगे
हम मुट्ठी भर जुगनू लेकर उजाला बांट रहे हैं.

 

=> मौसम राजपूत 

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