
भुला कर गम दुनिया भरके
एक बार फिर से बच्चे बन जाते हैं।
वही घर की सफाई कर, रद्दी बेच आते हैं।
जिम्मेदारियों को दफनकर आओ मिलकर दिए जलाते हैं।
छोड़ो कार बाइक का झंझट
सब मिलकर पैदल बाज़ार जाते हैं।
वही मोलभाव करके टाइम पास पटाखे लाते हैं।
जिम्मेदारियों को दफनकर आओ मिलकर दिए जलाते हैं।
रखो सारी फिक्र ताक पर
वैसे ही तुलसी को भी रोशन कर आते हैं।
कभी पटाखे तो कभी रॉकेट में आग लगते हैं।
जिम्मेदारियों को दफनकर आओ मिलकर दिए जलाते हैं।
छोड़ो सारी हिचकिचाहट
खुद ही छत पर टेस्टर लेकर जुट जाते हैं।
साल भर के काम छोड़ कुछ पल मस्ती में बिताते हैं।
जिम्मेदारियों को दफनकर आओ मिलकर दिए जलाते हैं।
शुभ दीपावली
डॉ आरके सिंह,