फ़र्क नही पड़ता

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फ़र्क नही पड़ता
कि कोई क्या कहता है
पर अपने कुछ कहे तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
कि झोलियाँ भर जाए
पर दुवाओं से खाली हो तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
कि अनगिनत मीत हो
पर कोई गले ना लगाये तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
चौखट पर आहट हो
पर आँगन ना गूँजे तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
इत्र की महक हो
पर चरित्र ना महके तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
कोई शूल बोये
पर फूल ना बोये तो
फ़र्क पड़ता है
फ़र्क नही पड़ता
कोई वाह वाह करे
पर एक थपकी ना मिले तो
फर्क पड़ता है

—विभा पाठक

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