सवाल बनकर भी..

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सवाल बनकर भी
तब तक सवाल नहीं होता
जब तक उसे ..
उठाया न जाए ,
जवाब होकर भी,तब तक..
जवाब नहीं बनता ..
जब तक उसे ..
माक़ूल वक्त पर,
दिया न जाए,
सही वक्त पर उठे सवाल ..
और उनके माकूल जवाब..
कुछ उस दवा जैसे होते हैं..
जो मर्ज़ की नब्ज़ पकड़कर..
वक्त रहते ..
इलाज करते हैं .और
मर्ज़ को बढ़ने से..
रोक लेते हैं।

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