एक चुभन

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आज फिर कुछ टूटा है मन की दीवारों से टकराकर , फिर एक चुभन हुई और इन आंखों ने ही साथ दिया है आंसुओं को बहा कर…
लफ़्ज़ों ने फिर से खामोशी का साथ दिया, उन दीवारों के सैलाब ने आंखों से रास्ता मांग लिया ;
वक्त का पहिया उन टुकड़ों को सैलाब में बहा ले जाएगा और फिर से चोट खाने के लिए दीवारों पर मरहम लगाएगा ;
चोटें भी भर जाएगी, सैलाब भी थम जाएगा और एक बार फिर से लफ्ज़ खामोशी का दामन छोड़ेंगे शायद फिर से एक चुभन के इंतजार में…..

 

———प्राची द्विवेदी————

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