डाक्टर साहिबा

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रात के ढलते-ढलते
एक नया सवेरा होता है
ज़िन्दगी के अंधेरे से निकलने का
एक नया बहाना होता है।

रोज़ सुबह अस्पताल जाने की
सोच पैरों में दर्द होता है
दूरियों को तानकर अकेले
अस्पताल पहुंचना होता है।
यूं पथरीले रास्तों से चलते
ज़िन्दगी की कडुवाहट
बार -बार कडुवे जीवन की
याद है दिलाती
पर अस्पताल पहुंचते ही
निशा मेडम की बेटा-बेटा पुकार
ज़िन्दगी की कडुवाहट भुलवा देती है
ज़िन्दगी के हर मोड़ पे
बहुत से ताने है
सुनने को मिले
अपनों ने और परायों ने
बेटा न कहकर
निसंतान है पुकारा
निशा मेडम के
बेटा-बेटा पुकार में
अपने भी पराये
लगते है

न जाने मेरा क्या रिश्ता है आपसे
जो आपको देखते ही
सारे ग़म भुला देती हूं
आपका प्यारा सा वर्ताव
सारे घावों में मर्म का
काम कर जाता है।
निशा नाम सुनते ही
निसंतानों के चेहरे पे
आशा की उम्मीद
झलकने लगती है
मैं जब भी आपसे मिलती
आपका प्यारा सा वर्ताव देखकर
मेरे सारे दर्द कष्ट सब
दूर हो जाते है।

न जाने मेरा क्या रिश्ता है आपसे
मैं बहुत कद्र करती हूं आपकी
आपसे मिलने से पहले
सबके चेहरे उदास दिखते हैं
आपसे मिलने के कुछ महीनों में
उनके घर के चिराग खिलने लगते हैं
सबके चेहरे में गम के आंसू को मिटाकर
अपने खुशियों के आंसू भर दिए।
सबकी सूनी झोली को
खुशियों से भर दिया।

यह देखकर मेरे मन में भी
आशा की किरण है जागी
निराश पूर्ण सबके जीवन को
खुशियों से भरा है आपने
सबी बढ़कर गुण है आपमें
शायद इसीलिए डाक्टर को
भगवान का रूप माना है सबने
शायद इसीलिए मुझे
आप बहुत अच्छी
लगती हो।

=> मंजू नायर 

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