तुझसे ही है हकीकत सारी, तुझसे हैं ख्वाब नए,
तुझसे ही है रास्ते सारे, तुझसे ही मंज़िल मेरी ।
तुझे गले लगाके छोड़ने का मन नहीं करता,
तू कितनी भी हो नाराज़, तुझसे मन नहीं भरता…
जब कभी गिरती हूँ, तू हौसला देती है ;
तू ही मेरी मोहब्बत, तू ही तो सच्ची दोस्ती है ।
बेफ़िक्री से चलते चलते बहुत कुछ सिखाती है,
प्यार से दुलारती है, फिक्र से हाथ फेरकर फिर तू थामती है ;
कभी खुशियां देकर दिल को हौले से पुचकारती है, आसमान में उड़ना सिखाने के लिये गिराती और फिर संभालती है।
उम्मीदों को पंख भी तूने ही दिए हैं,
गिरूँगी, उठूंगी, चलूंगी और फिर उड़ान भी भरूँगी ;
मुझे पता है तू मेरे साथ है, एक हमदर्द हमसाये की तरह,
मेरे एकांत की साथी और एहसासों की गवाह बनकर,
नाज़ुक पलों में थामकर, गले लगाकर, फिर से उठाती है ;
जिस बेफ़िक्री से तू चलती है, उसी बेपरवाही से मुझे जीना सिखाती है…
फिर कैसे कहूँ की तुझसे मन भर गया !
अभी तो मंज़िल को पाने के रास्ते दिखाएगी,
मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए, मुझे बहुत कुछ सिखाएगी…।
साँसों में भरने को, तुझे पल पल मोहब्बत करने को, जी अब करता है,
खुलकर तुझे जीने को मन अब करता है…
मेरी प्यारी ज़िन्दगी ! तुझसे मन नहीं भरता है,
बस मन नहीं भरता है…
~ प्राची द्विवेदी ~