हा! विधि का क्या विचित्र खेल है, विधाता ने कैसा द्वंद्व रच दिया आशा के भाग्य में! पति को स्वर्ग सिधारे तेरह दिन न हुए थे कि बेटा-बहू ने माँ के लिए एक निर्णय ले लिया। किंतु आशा इससे अनजान थी।
एक दिन प्रातः दोनों माँ के सिरहाने आकर बैठ गए। नकुल अपनी बूढ़ी माँ के आंसू पोछते हुए बोला-” माँ, इतनी दुःखी न हो। हम दोनों ने तुम्हारे लिए कुछ सोचा है। पापा के जाने के बाद तुम इतने बड़े घर में अकेले कैसे रह पाओगी? मैं यह नहीं देख सकता…। माँ, रिया को नई जॉब ऑफर हुई है बड़े शहर में। हम दोनों घर बेचकर वहीं शिफ्ट कर रहे हैं पर तुम चिंता न करो। तुम्हारे लिए नया घर देखा है, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी वहाँ।” आशा सब सुन तो रही थी पर निश्छल मन कुछ समझ न पा रहा था । रिया स्थिति संभालते हुए बोली-“माँ जी, आपके लिए बहुत अच्छा ओल्ड ऐज होम देखा है। वहाँ और भी महिलाएं हैं आपके हमउम्र।हम दोनों की इच्छा है कि आप कल ही शिफ्ट कर लें, मना मत करिएगा प्लीज़….।”
आशा के आंसू सूख गए। बेटा-बहू ने अकेलेपन को दूर करने की बेहतरीन तरकीब जो खोज निकाली थी। नकुल आशा का एकलौता, लाडला बेटा था सो मना भी न कर पाई।दोनों के सिर पर अपना हाथ रख, मधुर मुस्कान लिए कमरे से बाहर चली गई। ‘माँ सहमत है’ इस विश्वास ने दोनों के नेत्रों की चमक दोगुनी कर दी।
अगले दिन रिया ने जल्दी-जल्दी अपनी सास का सारा सामान पैक किया। दोनों माँ को लेने आए पर आशा निश्चिंत सो रही थी।निःसंदेह प्राण नहीं थे उसके मृत शरीर में। रिया नकुल का हाथ थामकर बोली-‘ तेरह दिन और लेट हो गया जॉइन करने में।’ ‘ आई नो, माँ को ऐसा नहीं करना चाहिए….’- नकुल सिर झुकाकर बोला।
- मोहिनी तिवारी