चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला।
चाह तेरी, मार्ग तेरा
काम न आएगा मेला
चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला।
प्राण-तन सब छक चुके हैं
बूंद न मिलती हृदय को
तोड़ लाओ चाँद-तारे
और मिटा लो इस जिरह को
श्वास भर फिर देख ले तू
आ गई नवप्रात बेला
चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला।
क्यों व्यथित, चिंतित खड़ा है?
हार, मुर्दों-सा पड़ा है
कर्म में मुक्ति तुम्हारी
मुक्ति की युक्ति है सारी
तोड़ बेड़ी-बंधनों को
कर पुनः जीवन से भेला
चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला।
- मोहिनी तिवारी