सुबह-सुबह एक भिखारी बैठ गया दहलीज पर
दहलीज पर भिखारी! मैं बोला खीजकर
अरे हटो, जाओ कुछ काम करो
मेहनत की खाओ, फिर आराम करो
दर-दर बैठ जाना, तुम्हें शर्म न आती है
भीख माँगने की आदत, स्वाभिमान खा जाती है।
सिर खुजाता भिखारी हाथ जोड़कर बोला,
दस- पाँच रुपया दे दो सरकार
लाचार हूँ, इतना कर दो उपकार
मेरी बीवी अपाहिज और बच्चे हैं चार
इन सबकी भूख का मेरे सिर पर भार
बच्चे हैं चार! मैं सुनकर डोला
मुख बना मेरा, आग का गोला
अरे मूरख! काहे की लाचारी,
गरीबी में पैदा करता है बीमारी
तेरा मकसद केवल परिवार बढ़ाना
भीख माँगकर जीना तूने मन में ठाना
तेरे निश्चय से जीवन कट तो जाएगा
पर क्या जीवन कटने से दुःख घट जाएगा?
क्या घट जाएगा हृदय का अंधकार?
जिससे उबरने को मनुज जन्मता है सौ बार….।
- मोहिनी तिवारी