हैं कितने मजबूर देश के ये सारे मजदूर,
चलत चलत पड़ गए हैं छाले पर मंजिल अभी है दूर।
निकल पड़े सब भूखे प्यासे धैर्य भी उनका छूट रहा,
देश का हर नेता मजदूरों का सुख चैन है लूट रहा।
घर छुटा, रोजगार भी छूटा, फिर छूटा ये संसार ,
पेट भी खाली जेब भी खाली, गरीबों पर ये कैसा अत्याचार।
बच्चे हुए अनाथ हजारों सुनी हुई कलाई,
विकल हृदय देख भर आये आंसू बहुतों को दया ना आई।
उनकी भरे तिजोरी जिनके पास भरा है सबकुछ,
रोजी रोटी का साधन दो जिन्हें नहीं बचा है अब कुछ।
ये मिथ्या आडम्बर छोड़ो गरीबों का ना उपहास करो,
बिलख रहा है जीवन उनका कुछ उनके लिए भी खास करो।
- श्री मति रजनी