भीख स्पॉट

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भीख स्पॉट – एक ऐसी जगह जहाँ बैठने से ज्यादा भीख मिलती हो। भिखारी हमेशा ऐसी जगहों पर कब्जा करना चाहते हैं। इसी की होड़ उनमें बनी रहती है। जिस प्रकार एक व्यवसायी अपने प्रतिष्ठान के लिए अच्छी जगह का चुनाव करता है, ठीक वैसे ही भिखारियों को भी ऐसे स्पॉट्स की तलाश रहती है जहाँ से उन्हें भीख के रूप में अच्छी आमदनी हो सके। इस तलाश में हर भिखारी को कई कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। अमूमन यह लगता है कि भीख तो हर जगह मिल जाएगी, पर वास्तविकता इससे परे है। फलदायी अर्थात अच्छी कमाई के भीख स्पॉट्स अलग ही होते हैं।
मटरू ने एक दिन अपने दोस्त कालू से पूछा –
‘अबे कलुए का हाल है? सब कइसा चल रहा है , मुँह काहे लटकाए हो बे?’
कालू ने खींजकर उत्तर दिया –
‘का खाक चल रहा है…
चल जा, काम कर अपना, भेजा न खा।’
‘अबे बोल यार का हुआ? दिनभर चौराहे पर जमा रहिता है। बइठे-बइठे धूल खाता है का? देख कइसा मरियल हो गया है।’
‘साले दुनिया बड़ी मतलबी है।'(कालू भारी मन से बोला )
‘अच्छा…!’ (मटरू खिलखिला उठा)
कालू के मानो आग लग गई हो।वह चिल्लाकर बोला –
‘हाँ, हाँ और हँस ले बे। भिखमंगों की कहाँ इज्जत होती है…?’
मटरू से रहा न गया। उसने तुरंत प्रतिवाद किया –
‘बकवास मत कर। मैं भी तो भिखारी हूँ , पर तेरे माफिक रोता नहीं हूँ।’
‘तू काहे रोएगा बे? तू साला राजा भिखारी है।’
‘राजा भिखारी!’
‘और का? इज्जत से जीता है, कोई लात मारकर भगाने वाला नहीं है तेरे को। साला मउज काट रहा है और मैं….’
‘तू भी मउज काट न। कउन रोकिस है ?’
‘पर कइसे? बोल यार’
‘बताता हूँ बे। पहिले कुछ खा-पी लूँ। बड़ी भूख लगी है।’
इतना कहकर मटरू ने अपनी झोली से चपाती और गुड़ निकाला। दोनों ने भरपेट भोजन करके चैन की सांस ली।
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कुछ देर बाद कालू सिर खुजाते हुए बोला –
‘का बताऊँ यार, बरसों से इसी चौराहे पर बइठ रहा हूँ। सुबह से शाम तक 20-25 रूपया ही मिल पाता है। कोई देखने वाला नहीं है। लोग राजा बाबू बनकर घूमते रहिते हैं, पर दमड़ी नहीं निकलती जेब से। पैरों पर गिर जाऊँ तो 2-4 रूपया फेंक देते हैं रंगबाजी में। अबे! कलेजे से चीख निकल पड़ती है…। साला गाड़ियों की धूल-धक्कड़, ऊपर से रइसजादों के तेवर! जी करता है जहर खा लूँ, पर जहर खरीदने तक की औकात नहीं…’
‘अरे रे रे…का बक रहे हो? जहर खाएं तेरे दुश्मन। तुझे मैं छप्पन भोग खिलाऊँगा।’
‘छप्पन भोग! पगला गए हो का?’
‘खिला दिया तो…’ (मटरू ऐंठकर बोला)
‘अमा मियाँ! साफ-साफ कहो।कइसे होगा ये सब?’
‘सब होगा…।’
कालू के चेहरे पर एक चमक आ गई। उसने मटरू का हाथ कसकर पकड़ लिया। मानो अँधेरी रात में किसी ने आशा के दीप जला दिए हो।
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‘किसी मंदिर में जाकर काहे नहीं बैठ जाते?’ मटरू ने कुछ गंभीर स्वर में कहा। सारे गमों का वही इलाज है। हम भिखारियों के लिए मंदिर से बढ़कर कोई सरग नहीं। मंदिर की सीढ़ी पर बस पलथी मारकर बइठना है। बड़े-बड़े धन्ना सेठ झुक-झुककर झोली भर देते हैं। हमारा काम इतना है कि हाथ उठाकर सबको दुआ देते रहो। बढ़िया खाना, बढ़िया कमाई… और का चाहिए अपन को?’
कालू खामोश सब सुनता रहा।एक क्षण बाद उसकी खामोशी टूटी। ‘ चुप रहो बे। ज्यादा ज्ञान न बघारो। का मंदिर में जगह मिल जाना बड़ा आसान है? पैर धरने की जमीन नहीं मिलती। बड़ा लफड़ा है इसमें। साला झूठे सपने दिखा रहा है..।’ कालू मटरू पर बरस पड़ा।
‘अबे मैं जानता हूँ, पर कोशिश तो कर।’ मटरू ने कहा।
‘बहुत भटका हूँ। कहीं एक दिन भी न टिक पाया। हर मंदिर-मस्जिद पर सबके अपने-अपने झुंड हैं अउर अपनी-अपनी बातें। कहाँ जाकर बइठ जाऊँ? अगर कहीं जुगाड़ बन भी जाए तो दबंगों की दादागिरी अउर जेब खर्च वाली वसूली, इन सबसे कइसे बचूँ ?’
‘साला सही कह रहा है। गुंडा टैक्स तो देना ही पड़ता है। का करें…!’
कालू का चेहरा उतर गया।उसकी हिम्मत टूट गई। वह अपना फटा झोला थके कंधों पर टांगकर बोला- ‘चल छोड़, मैं जाता हूँ। फिर मिलेंगे।’
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‘रूक’ मटरू ने पीछे से आवाज दी।
‘अब का है?’ कालू झुलझुलाकर बोला।
‘सुन, आगे तिराहे पर एक मंदिर है। बहुत बड़ा नहीं है, पर लोग बहुत आते हैं। मंदिर के बाहर एक पेड़ है। उसके नीचे बैठ जा। तेरा काम चल जाएगा।’
‘अबे कोई बवाल तो नहीं होगा?’ कालू हड़बड़ाकर बोला।
‘यार तू डर मत। वो इलाका मेरा है। साले किसकी औकात कि तुझे हटा दे..? हचक के खा अउर खूब पइसा पैदा कर।’
‘अबे ऐसा होगा!’
‘तेरी कसम।’
‘यार तुझे जिंदगीभर नहीं भूलूँगा।’
‘अब जा साले। मौके का फायदा उठा। मंदिर के रहते हम भिखारी एक-एक निवाले को तरसे! ये ऊपर वाले का अपमान है।’
मटरू की बात सुनकर कालू ठहाका मारकर हँसने लगा। उसे लगा कि अब वह बेसहारा नहीं है। उसकी नजरें मंदिर जाने वाले मार्ग पर टिक गई और उसकी आँखों में बड़ी आमदनी के सपने तिरने लगे। अंततः मटरू ने यह सिद्ध कर दिया कि पूजास्थल ही सबसे अधिक फलदायी भीख स्पॉट्स होते हैं।

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