पटरियों पर पड़े वो मज़दूर थे, किसी पार्टी का चोला ओढे होते तो हल्ला होता।।
वो बिलखते परिवार मजबूर थे, किसी नेता के होते तो हल्ला होता।।
उस नन्ही बच्ची के पांव में छाले थे, पैरों में विदेशी जूते होते तो हल्ला होता।।
वो बिलखता मुन्ना मां के कांधों पे था, किसी आया के गोद में होता तो हल्ला होता।।
वो नंगे पांव सौ योजन निकला था, कोई राजनीतिक यात्रा होती तो हल्ला होता।।
उसके पेट में एक दाना ना था, किसी पार्टी का अनशन होता तो हल्ला होता।।
वो भारत का एक निवासी था, कोई एनआरआई होता तो हल्ला होता।।
वो गिरती राजनीति का मारा था, दुलारा होता तो हल्ला होता।।
सिस्टम से वो बदनसीब था, खुशनसीब होता तो हल्ला होता।।
- डॉ राकेश कुमार सिंह