अप्रत्याशित!

902

कहने को है बहुत, पर अल्फ़ाज़ कम पड़ गए हैं।
सोचने का वक़्त ही वक़्त है, पर जज़्बात कम पड़ गए हैं,
पहली दफा की बात है, पहली दफा की बात है,
हुआ इतना कुछ है, की हालात कम पड़ गए हैं।

सब व्यर्थ में भाग रहे थे,
छोटी छोटी खुशियां त्याग रहे थे,
माया के मोह में दिन रात जाग रहे थे,
सफलता की इस न रुक पाने वाली दौड़ में,
मैदान भी कम पड़ रहे हैं,
कहने को है बहुत, पर अल्फ़ाज़ कम पड़ गए हैं।

इस घड़ी में मृत्यु एक औपचारिकता मात्र रह गयी है,
पहली बार मौत ज़िन्दगी से ज्यादा सस्ती हो गयी है,
अभी वक़्त है संभल जाओ सारे,
इस मातम के दौर में शमशान भी कम पड़ गए हैं।
कहने को है बहुत, पर अल्फ़ाज़ कम पड़ गए हैं।।

  • वैभव कपूर !!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here