अपने लिये

733

[avatar user=”vibha” size=”98″ align=”center”]vibha pathak[/avatar]

अपने लिये
जियें तो क्या जियें
ग़ैरों के लिये जियें तो जाने
अपने आँगन
फूल खिलायें तो क्या खिलायें
कुछ सूने आँगन
फूल खिलातें तो जाने
निज संताप
मिटाएँ तो क्या मिटाये
पर-संताप मिटाते तो जाने
अपने अश्रु पोछें तो क्या पोछें
ग़ैरों के पोछों तो जाने
अपने लिए दुआओं के
हाथ उठें तो क्या उठें
दूसरों के लिए उठतें तो जाने
अपनों को अपना बनाये तो क्या बनायें
अज़नबी को अपना बनाते तो जाने

  •  विभा पाठक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here