एक दुखद गाथा

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ज़ख्म यूं देते हो की
मरम भी न काम कर सकते हैं
मरम की बात सुनते ही
ज़ख्म याद आते है
तुम्हारे घर होते भी
बंद घर में अकेले रहना पड़ता हैं ये
तुमसे बात करने आऊ तो
चुप बैठने को कह जाते हो
दोस्तों से रिश्ते दारों से
घंटों तक हस हस कर बात करते हो
मेरे बात शुरू करते ही
चुप बैठने को कह जाते हो।
ज़ख्म यूं देते हो की
मरम भी न काम कर सकते हैं।
मरम की बात सुनते ही
ज़ख्म याद आते हैं।

अपनी खुशियों को फोन पे तुम ढूंढते हो
मेरी खुशियों को मैं तुम पर ढूंढने आऊ तो
तो तुम मुझे भगा देते हो
दिन भर रसोई में काम करना पड़ता हैं
उस बीच कभी तुमसे बात करूं तो
कुछ जवाब न मिल पाता है।
तुम फ़ोन पर इतने मग्न हो की
तुम तक मेरी आवाज़ न पहुंच पाती है
कमरे में बैठे कर
रसोई में बैठे मुझे कोमडी फोरवेड करते हो
पर वो कोमडी तुम मेरे संग न कहते हो।

अकेले फ़ोन पे कोमडी देख -देख कर
तुम हंसते हो
पर मेरे कहे कोमडी पे तुम
नज़र अंदाज़ कर देते हो।
दोस्तों से फ़ोन पे
ओर बताओ ओर बताओ कहते हो
मेरे कुछ कहने से पहले ही
चुप बैठने को कह डालते हो।
ज़ख्म यूं देते हो की
मरम भी न काम कर सकते हैं
मरम की बात सुनते ही
ज़ख़्म याद आते है।
ये सिर्फ मेरे घर की बात नहीं
आज हर घर की बात यही ।

  • मंजू

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