[avatar user=”prachi dwiveddi” size=”98″ align=”left”]Prachi Dwivedi[/avatar]बताया भी बहुत, जताया भी बहुत ;
पर, तुमने कभी समझा नहीं;
प्यार तो है बहुत तुमसे, पर तुमने ये जाना नहीं ,
क्यों, तुमने पहचाना नही;
हमेशा लगता था एक डर, कि न मिले हम तुमसे गर,
अधूरी रह न जाये ये मन की बातें,
सोंची थी, जो मिलकर तुमसे कहूँगी;
उम्मीद थी एक हमेशा,कि कभी तो तुम समझोगे , कभी तो तुम बदलोगे…
इंतज़ार हमेशा किया तुम्हारे कुछ कहने का,
पर तुमने कहा तब, जब इंतज़ार भी थक गया….
अब न रही कुछ आरज़ू, उम्मीदों ने भी साथ है छोड़ दिया;
क्या कहें अब तुमसे, तुमने तो खुद ही से दूर कर दिया;
लगता है अब ऐसे कि तुम न अब समझोगे , तुम न अब बदलोगे…
कहना तो था बहुत कुछ,
सोचा था, जो मिलकर तुमसे कहूँगी;
कितनी बातें , कितनी परवाह, सब बेपरवाह करुँगी;
कबसे किया इंतज़ार उस पल का,
जब ये सब कहना था तुमसे ; सोचती हूँ अब,
इतनी बातों को,प्यार भरे जज़्बातों को,अब मन में ही रहने दूं ;
क्योंकि लगता है अब ऐसे कि ,
तुम न अब समझोगे , कि तुम न अब बदलोगे….