” नीरस मौन खड़ा हूं मैं “
प्रिये,
तुम मेरी प्रेरणा थी
मरु हृदय की चेतना थी
मेरे क्षुब्ध अधरों की
मधुर मुस्कान थी तुम।
लक्ष्मी बन कर रही
मेरे भवन में
मेरी आभा, मेरी पहचान थी तुम
तुम्हारे संग मैंने
प्रेममय संसार देखा
हर स्वप्न, हर त्यौहार देखा।
किंतु,
आज मै टूटा हुआ हूं
उल्लास से छूटा हुआ हूं
अब शेष न कोई बात है
न कोई शुरुआत है।
प्रिये, तुम छोड़ गई थी
जिस पथ पर
उस पर गमगीन पड़ा हूं मैं
हृदय संजोए चित्र अगणित
नीरस मौन खड़ा हूं मैं
नीरस मौन खड़ा हूं मैं।।
मोहिनी तिवारी