तेरा और मेरा नाम अलग, रुप अलग और रंग अलग
जीवन का हर गणित अलग, जीने का हर ढंग अलग
पर ,औरत होने की पहचान सखी तेरी भी वही मेरी भी वही।
तुम नख से शिख तक रत्न जड़ित,मैं फूलों का श्रृंगार किए
हाथों में तुम्हारे स्वर्ण कलश,मैं खड़ी हूँ हरसिंगार लिए पर,
आभूषण के भूषण में ,बन्धक तन की टीस सखी, तेरी भी वही मे री भी वही।
तुम खिली धूप हो सुबह की ,और सखी मैं साँझ की ठंडक
तुम मेघा बन कर बरस रही,मैं बिजली बन कर गयी तड़क
पर रात के अँधेरों का डर, तेरा भी वही मेरा
भी वही।
फूलों में तुम हो गुलाब और सखी मैं रात की रानी
थोड़ी सी तुम हो अभिमानी,थोड़ी सी मैं भी हुँ सयानी
पर मसले जाने का एहसास सखी! तेरा भी वही मेरा भी वही
तू रेशम के धागों में लिपटी और सखी मैं सूत-समायी
नैनों में तेरे हैं स्वप्न सुनहरे, मेरी आँखें यूँ ही भर आयीं
पर चौसर के खेल का डर ,तेरा भी वही मेरा भी वही।
तू धवल चाँदनी सी उज्ज्वल और सखी मैं गंगा सी निर्मल
मुख पर तेरे निष्पाप तेज और सखी मैं दर्पण हूँ हर पल
पर अग्नि-परीक्षाओं का भय तेरा भी वही मेरा भी वही।
तेरे त्याग से सिंचित है सखी तेरा संसार, मैंने भी अपना सर्वस्व अपनों पे दिया है वार
तू दीपशाखा सी जली है पल पल,और सखी मैं सुलगी बन धूप
बिखराती तू चहुँओर उजाला, और सखी मैं सुगन्ध का रूप
पर दो कौड़ी की औकात सखी तेरी भी नहीं मेरी भी नहीं।
=>गीतांजलि शुक्ला (प्रधानाध्यापिका, प्रा वि गजनेर)
कानपुर