[avatar user=”Seema Shukla” size=”98″ align=”center”]Seema Shukla[/avatar]
ओ दिवाकर..!
साँझ को तुमको एक दिन,
देखा था छुपते .कि
ज़रा मेरी पलक ,क्या झपक गई ..
तुम्हारी वह लाल थाली ,
झुरमुट में कहीं अटक गई ..
दूर-दूर तक दौड़ाकर ,
नजरों को खोजा तुम्हें …
पूरब की लाली देख,
जब चौंकी..मुड़ी तब,
देखा माथे की बिंदिया भर..
कुछ मुस्कुराता…
कुछ उदास चेहरा लिए तुम,
जा रहे थे अपनी प्रिया रात के पास,
अपने सखा दिन को छोड़कर…
ओ दिवाकर..!