मेरे सपने

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बीते कल की बात पुरानी कह दूं, उस पल की कहानी…
जब उनके मृगलोचन ने प्रेम की बाट दिखाई थी;
अमर प्रीत के तिनके से छोटी सी कुटी बनाई थी…
हरपल साथ के विश्वास से प्रीत का सींचा था पौधा;
रहे मिलन के इंतज़ार में , किया नहीं कोई सौदा;
बीते वक़्त के उन लम्हों में, देखे सतरंगी सपने…
दोनों यही सोचकर बैठे ,मेरे सपने मेरे अपने…
अमर प्रीत की उस कुटिया में ,समय से हो गई बस एक भूल…
जब कालचक्र के पहिये ने ,दो में तोड़ दिया एक फूल…
अप्रत्याशित उस आंधी में , वो फूल नहीं बस टूटा था ;
टूट गए थे ,वो सपने जो लगते थे उनको अपने …
कह रहा अकेला बचा फूल जो ,बेरंग हो गए वो सपने…
हम दोनों जो सोचकर बैठे मेरे सपने मेरे अपने…

 

———प्राची द्विवेदी————

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