ये जो खालीपन सा है हमारे दरमियाँ, रूहानियत से इसे अपनी फिर से भर दो ना;
फिर एक बार मुझसे मोहब्बत कर लो ना…
समेट लूँगी तुम्हारे सारे अँधेरों को अपने में,
एक बार मेरे इश्क़ को तो रोशन कर दो ना;
तुम्हरे क़दमों की आहट सुनकर, दौड़ने लगता ये जो मेरा मन है,
अपनी बाहों में समेटकर इस अधूरेपन को पूरा कर दो ना;
ये जो खालीपन सा है कहीं मेरे अंदर, इसे भर दो ना…
बस एक बार फिर से मुझसे, मोहब्बत कर लो ना …
बंजर ज़मीं सा लगता ये जो सूनापन है,
अपनी मोहब्बत की बारिश से इसे सराबोर कर दो ना;
मुश्किल हालातों से भी; साथ में उबर आएँगें,
दर्द तुम्हारे; मेरी आँखों से निकल जाएँगे,
बस एक बार फिर इस “तुम” को “हम” कर दो ना;
ये जो खालीपन सा है कहीं मेरे अंदर, इसे भर दो ना…
फिर एक बार मुझसे वही मोहब्बत कर लो ना…
वीरान सा, एक आशना पड़ा हैं मेरे अंदर भी,
अपने प्यार की फुहार से,साथ ओ विश्वास की बौछार से गुलशन इसे फिर कर दो ना,
कहीं गुम हूँ मैं ख़ुद में, न जाने कितने बरसों से,
ढूँढ कर फिर से एक बार; अपनी पलकों में बसाकर मुझे संवार तो दो ना;
ये जो खालीपन सा है एक मेरे अंदर, इसे भर दो ना…
बस एक बार फिर से वही मोहब्बत कर लो ना …
सरल, सहज, सुन्दर हो कितने, नहीं हूँ उस पैमाने पर,
कोशिशें भी पूरी होंगी मेरी, “हम” जो हों खड़े एक ही किनारे पर;
अपनी सहज सरलता से मेरी ये कठिनाइयाँ दूर कर दो ना…
शिकवे शिकायतें भी नहीं होंगी कोई, हाथ थामकर जो तुम साथ चलोगे,
तुम्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ, तुम्हारे दिल के अफसानों को अब भी पहचानती हूँ,
इजहार-ए-मोहब्बत के कुछ मौके; आख़िर अब तो ढूँढ ही लो ना…
कुछ तो खालीपन सा है कहीं तुम्हारे अंदर भी; इसे साझा तो, मुझसे कर लो ना…
बस एक बार फिर, वही मोहब्बत कर लो ना…
मेरी तरह ये कविता भी अधूरी रह गयी है, तुम बिन;
अपने एहसासों को लफ़्ज़ों में पिरोकर, इसको भी पूरा कर दो ना;
ये जो खालीपन सा है हमारे दरमियाँ, उसी रूहानियत से फिर इसे पूरा कर दो ना;
एक बार फिर से वही मोहब्बत कर लो ना…
बस एक बार फिर से वही मोहब्बत कर लो ना … ।
~ प्राची द्विवेदी ~