[avatar user=”prachi dwiveddi” size=”98″ align=”left”]Prachi Dwivedi[/avatar]हाँ…
होती है बिटिया नाजुक,
सजना और संवरना उसकी आदत ही नहीं,
प्रकृति की अपेक्षा भी है
उससे-
प्रकृति अपने सौन्दर्यतम, कोमलतम किंतु, शक्ति संपन्ना रूप को
उसके द्वारा उद्भाटित करती है,
उसे यूँ न मिटाओ;
‘ये बेटा है हमारा’ कहकर, उन्हें टॉम बॉय न बनाओ |
बिटिया को बिटिया रहने दो, बेटे को बेटा रहने दो,
एक चंदा है और एक सूरज, बराबरी की होड़ में उन्हें यूँ तो न टकराओ |
सूरज का अपना तेज है और चन्दा की शीतलता अपनी,
बेटा है सूरज सा, तो बेटी है चन्दा सी |
दोनों के अस्तित्व हैं अपने… हैं अपनी पहचान,
हैं नहीं भुलाए जा सकते; दोनों के ही, अपने अपने त्याग और अपने बलिदान…