बुरी सी रीत….

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हतप्रभ है ये पुरुष प्रधान महान समाज – युगों से, सदियों से
या कह लो कि डरा हुआ है एक नारी के समक्ष दिखती स्वयं की कमियों से,
और हो भी क्यों न, सत्य ही तो है एक नारी के आगे पुरुष का शक्ति हीन होना
है कहीं वो भाव जो सीखा दे पुरुष को एक दिन के लिए भी नारी होना,
वो भगवान, वो रखवाला, वो ब्रह्मा ,विष्णु, महेश का बोलबाला
उन्हें भी तो अवतार लेने को हर युग में चाहिए एक बाला,
जो इतिहास को समेट के देखो तो देवियों ने ही निपटा डाले के कई राक्षस,
और ये अप्सराओं का खेल तो स्वर्ग के उतरा और बन गए कई भक्षक,

इस समाज से न संभाली जाएगी एक नारी की शक्ति,
तभी तो माँ जगदम्बा, तुझे भी कन्या बना के पूजती है उनकी भक्ति,
है वो पुरुषार्थ किसी पुरुष में जो पूजे अपने ही घर की हर नारी को ,
अपने समाज, अपने देश, इस धरा की हर बेचारी को,
बेचारी का जो ये जोड़ लगा दिया है सबने नारी संग
बस इसी ने कर दी है उसकी हर महानता भंग,

चलो जगाते है आज इस धरा की हर एक अबला को,
चलो मिलाते हैं उसे उसके अंदर ही छुपी सबला को,
न किया कुछ ऐसा तो ये महान दुनिया उसे जीने नही देगी,
ईश्वर ने जो सबको दी है, वो वायु भी उससे ले लेगी,

उठ जाग नारी, अब लड़ आज बस अपने के लिए,
तुझे किसी की ज़रूरत नहीं, तू पूरी है खुद के लिए,
हर भाव का तू ही श्रोत है, तू संपन्न है, सम्पूर्ण है,
जो तुझपे है निर्भर, जिसे है डर, वो स्वयं अपूर्ण है,
आज उन्हें होने दे ये अपूर्णता का एहसास,
मरने दे उनके खोखले अहम, नारी पे होने वाले अट्टहास,

करो कुछ ऐसा की स्वयं के डर पे अपनी ही जीत हो,
एक नारी को दबाने की, कुचलने की, बंद अब ये रीत हो
बस एक सच्ची नारी की जीत हो
बंद अब हर वो बुरी सी रीत हो ।।

 

अनीता राय

Ast. Teacher

UP BASIC EDUCATION DEPARTMENT

KANPUR

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