यादें

364

आज –
घर गयी थी तुम्हारे
उसी तरह से-
जैसे बीते दिनों में
जाती थी
घर तुम्हारे
निजता में गूंथें
क्षणों की
बाँह थामें
तुम दिखाती थीं ।
घर की कई
नई पुरानी चीजें
और सामने की
तयशुदा
कुर्सी पर बैठ
अपनी मुस्कान से
बिना पूछे, जान लेती थीं
कई अनसुलझे ख्याल ।
आज तुम्हारी
अनुपस्थिति कहीं नही थी
तुम सब कोनो में मौजूद थी
करीने से घर वैसा ही सजा था
जैसा -तुम रखतीं थी
तुम्हारे हमसफ़र में
मैं तुमसे मिल रही थी

  • रचना शर्मा

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