विचार, साहस और शक्ति के उदगम स्रोत हैं। विचार क्रियाओं के नियामक ही नहीं अपितु स्वयं क्रिया का प्रतिरूप हैं। विचारों के अनुरूप ही क्रियायें सम्यक होती चली जाती हैं। विचार मानव जीवन और उसके शरीर को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं या कर सकते हैं, इसका अनुमान लगा पाना कठिन है। इतना भर कहा जा सकता है की मानव मस्तिष्क सीमा रहित है। उससे प्रस्फुटित होते विचारों की भी कोई सीमा नहीं है। किन्तु प्रत्येक विचार का व्यक्ति के जीवन और उसकी शारीरिक सरंचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मनोविज्ञान वेत्ताओं का अध्ययन है।
कोई स्वस्थ व्यक्ति भी यदि प्रतिदिन अपनी अस्वस्थता पर विलाप करता है तो एक न एक दिन वह बीमार हो जाता है। कोई बीमार व्यक्ति यदि अपनी बीमारी की गम्भीरता के विषय में सोचता रहता है तो उसे स्वस्थ होने में समय लग जाता है। इसके विपरीत जो विषम परिस्थितियों में भी आशावान और प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह विषमतम परिस्थितियों पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं।
संसार के महान शासक सिकंदर से जुड़ी एक कथा है। युद्ध में अपनी असफलताओं से वह बहुत हताश था। बड़े उदास मन के साथ वह एक झील के किनारे बैठा था। अचानक उसकी दृष्टि एक चींटी पर पड़ी। वह चींटी अपने मुँह में कुछ दबाये एक ऊँचे पत्थर पर चढ़ रही थी। हर बार वह अपने प्रयास में असफल हो जाती थी। लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। हर बार नीचे गिरने के बाद वह दोबारा नयी शक्ति से पहाड़ी पर चढ़ती। गिरने-चढ़ने के ऐसे अनेक प्रयासों के बाद अंत में वह सफल हो गयी। उसे अपनी मंजिल मिल गयी। सिकंदर चींटी के हौसले को देखकर हतप्रद हो गया। उसमे एक नई स्फूर्ति पैदा हुई। उसने निश्चय किया कि वह अपनी मंजिल के लिए निरंतर बढ़ेगा। असफलताओं से निराश नहीं होगा। अन्ततोगत्वा सिकंदर को जो सफलता मिली उसका साक्षी इतिहास है।
विचारों की इस शक्ति को पहचानना, उनमें छिपे साहस को ढूंढ़ना। तदानुसार आचरण करना सहज कार्य नहीं है। कौन नहीं जानता की “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” फिर भी कितने व्यक्ति ऐसे होंगे जो अपने मन को जीत की अवस्था में देखा करते हैं और विषम परिस्थितियों में भी प्रफुल्लित आशाकिरण का वरण करते हैं। मन क्या है? विचारों का झुरमुट। कितने ही विचार
उस झुरमुट में रहते हैं उनमें से सत और असत विचारों में भेद करके सत विचारों की शक्ति और साहस को पहचानकर क्रियाओं को अमलीजामा पहनाया जाए वही श्रेयस्कर होता है।
सत विचारों की शक्ति सर जीवन संगठित होता है। भटकन समाप्त होती है। जीवन की दिशा सुनिश्चित होती है। जीवन समयनिष्ठ होता है। सत विचारों की शक्ति से प्रेरित व्यक्ति अपने जीवन के युद्ध का आधे से अधिक भाग जीत लेता है।
सत विचारों से तात्पर्य है निराशा से पलायन। अनिष्ट के भय से दूर। वैचारिक बिखराव से परे। अनियमित दिनचर्या का परित्याग और समयनिष्ठा।