स्वस्थ मन। पुष्ट शरीर। सफल जीवन। इन सभी के लिए कुछ शर्तें हैं उनमें से एक शर्त है शग़ल, व्यसन या हाबी का होना। चीजें और व्यक्तियों में दिलचस्पी या रुचि रखना। शग़ल या दिलचस्पी के अभाव में कोई भी अपने दिन प्रतिदिन के कार्य भोज से दबकर अवसाद में आ जाएगा। उसके लिए भार स्वरूप हो जाएगा। इस बार के चलते वह शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाएगा। जीवन के प्रति उसका मोंह भंग हो जाएगा। वह भरे समाज में स्वयं को अकेला और अनजान महसूस करेगा। ऐसे लोग जिनकी बातचीत करने में रुचि नहीं होती वह मंडली गोष्ठी या सभा सोसाइटी में स्वयं को अजनबी और ठगा-सा पाते हैं। उन्हें वहाँ समय काटना दूभर हो जाता है। अक्सर ऐसे व्यक्ति समारोहों में शिरकत करने से कतराने लगते हैं। अपने गिने-चुने अज़ीज़ों के साथ ही अपना वक्त काट लेते हैं।
दूसरों में दिलचस्पी रखने वाले लोग समाज के सफलतम व्यक्ति होते हैं। उनके लिए संपूर्ण संसार उनके घर के समान होता है। वह कहीं भी जाकर ना उबते हैं ना दूसरों के लिए उबाऊ समझे जाते हैं। उनका दायरा इतना बड़ा होता है कि वह किसी भी पल अपने को अकेलेपन से जूझते नहीं पाते हैं। जो है कहते हैं या सोचते हैं कि शग़ल का होना अथवा अपने से अन्य लोगों व वस्तुओं में दिलचस्पी रखना महत्वपूर्ण नहीं है निश्चित रूप से अपनी छुपी हुई प्रतिभा, निपुणता, कौशल, क्षमता एवं सामर्थ्य की अकाल मृत्यु की बाट जोहते हैं। मानव शरीर मे क्षमताओं और सामर्थ्य का सागर लहराता है। इस अथाह सागर से प्रतिभा के मोतियों को शग़ल और दिलचस्पी के द्वारा ही समाज के समक्ष लाया जा सकता है। कोई भी प्रतिभा तब तक प्रकट नहीं होती जब तक उसके लिए मन में रुचि न पैदा की जाए। उसे हावी ना बना लिया जाए और उसका प्रयोग दूसरों में अपने प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए ना किया जाए।
संगीत प्रेम सभी में पाया जाता है। कुछ लोग संगीत में दिलचस्पी रखते हुए उसे अपनी हॉबी बना लेते हैं। वह दुनिया को अपना मुरीद बना लेते हैं। इसी प्रकार से मन के भीतर बैठी ना जाने कितनी प्रतिभाएं हैं जिन्हें ढूंढ़ निकालने का कार्य हॉबी और दिलचस्पी जैसे यंत्र ही कर सकते हैं। हॉबी और दिलचस्पी रखने की भावना निरंतर शरीर में पैदा हो रही ऊर्जा को सही दिशा में वह करती है। ऊर्जा के इस व्यय से व्यक्ति का जीवन सुखी होता है। शरीर पुष्ट होता है। वह चर्चित व्यक्तियों की कतार में खड़ा हो जाता है
सत्य है कि कुछ व्यक्ति महान कहने के लिए पैदा होते हैं। यह भी सत्य है कि अधिक लोग महान बनाए जाते हैं। इससे भी बड़ा सत्य है कि व्यक्ति स्वयं महान बनता है। उसके महान बनने का राज उसके द्वारा अपनी प्रतिभाओं को पहचानना और उन्हें समाज के समक्ष प्रस्तुत करना है।
अक्सर लोग आश्चर्य करते हैं कि साधन विहीन परिवार का कोई व्यक्ति महानता के शिखर पर कैसे पहुंचा। इसका एक ही उत्तर है उसकी अपनी प्रतिभा खोज। अपनी प्रतिभा और बाह्य संसार में लोगों व वस्तुओं के प्रति उसकी बेझिझक दिलचस्पी जो उसका शग़ल रहा।