याददाश्त

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अभ्यास का प्रतिफल है याददाश्त या स्मृति।
सामान्यतः लोगों को अपनी याददाश्त पर भरोसा नहीं होता। यही कारण है कि जब लोगों से पूछा जाता है कि उनकी स्मरण शक्ति कैसी है तो उनमें से आधे से अधिक लोग यही कहते हैं कि उनकी स्मरण शक्ति बहुत खराब है। कुछ अवश्य कहते हैं कि पहले तो स्मरण शक्ति बहुत अच्छी थी लेकिन वर्तमान में वह बहुत खराब है। कुछ याद ही नहीं रहता। कुछ भी देखो या कुछ भी सुनो सब भूल जाता है।

ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है जो कहें कि उनकी स्मरण शक्ति अच्छी है या फिर बहुत अच्छी है। जबकि यह सही उत्तर है कि किसी की भी याददाश्त खराब नहीं होती। याददास्त खराब होने के पाँच ही कारण हैं- खराब स्वास्थ्य, मस्तिष्क में निष्क्रिय विचारों का जमघट, विचारों में संगठन की कमी, इन्द्रियों में तीक्ष्णता का अभाव तथा ध्यानपूर्वक देखने या सुनने के प्रति उदासीनता।

अच्छी स्मरण शक्ति के लिए उत्तम स्वास्थ्य आवश्यक है। रोगग्रस्त शरीर में अक्सर याददाश्त कम हो जाती है। इसी प्रकार स्वास्थ्य शरीर होने पर यदि मस्तिष्क में निष्क्रिय विचारों का जमघट लगा रहता है तो भी स्मरण शक्ति का ह्रास हो जाता है।

अच्छी याददास्त विचारों के उचित संयोजन पर निर्भर करती है। यदि एक विचार को दूसरे विचार से क्रमबद्ध रूप से जोड़कर याद रखने का प्रयास किया जाए तो याददास्त अव्वल बनी रहेगी। इसके लिए ज्ञानेद्रियों को सजगता में तीक्ष्णता का होना आवश्यक है। तीक्ष्ण और दक्ष ज्ञानेंद्रियाँ किसी वस्तु, विचार व घटना को अपने मे ऐसे समाहित कर लेती हैं कि वह स्मरण शक्ति का हिस्सा बन जाये। इन्द्रियों की तीक्ष्णता का तात्पर्य है, चीजों को ध्यान से देखना व विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना। किसी वस्तु को मात्र देखना या किसी विचार को सुनना भर उसे स्मरण शक्ति का अंग नहीं बनाता।
किन्तु यह सम्पूर्ण प्रक्रिया निरंतर अभ्यास मांगती है। अभ्यास के परिणामस्वरूप ही चीजों को ध्यानपूर्वक देखना व विचारों को ध्यानपूर्वक सुनना संभव हो सकेगा। ज्ञानेद्रियों को तीक्ष्णतर करने और विचारों में क्रमबद्ध संयोजन की स्थिति भी सतत अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि याददास्त अभ्यास के प्रतिफल है।

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