जिद्दीपन

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अक्सर जिद्दीपन को प्रबल इच्छाशक्ति का पर्याय मान लिया जाता है। यह समझा जाता है कि जो जितना बड़ा जिद्दी है, हठी है उसमें उतनी अधिक इच्छाशक्ति है।

इसी प्रकार बहुत खामोश रहने वाले व्यक्ति को दृढ़-निश्चयी या बलि पुरुष के रूप में देखा जाता है।
सत्यता यह है कि एक जिद्दी व्यक्ति बहुत कमजोर व्यक्ति होता है। वह अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होता। उसमें संतुलन स्थापित करने की क्षमता भी नहीं होती है। जबकि एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति में यह समस्त गुण विद्यमान होते हैं।

इसी प्रकार से बहुत खामोश रहने वाला व्यक्ति दृढ़ निश्चय ही ही होगा, कहना उचित नहीं। कोई यदि बहुत खामोश रहता है तो उसका सीधा सा संबंध उसके वैचारिक विकास के धरातल से है। उसके पास इतने विचार ही नहीं होते कि वह कहीं भी कुछ बोल सके। वार्तालाप में भागीदारी कर सके। इसीलिए वह अधिकतर खामोश रहता है। विचार युक्त व्यक्ति मुखर होता है।

दृढ़ इच्छाशक्ति ना तो व्यक्ति को दीदी बनाती है और ना उसे लंबे समय तक खामोश रहने के लिए प्रेरित ही करती है। निर्णायक विचार सदा निर्णायक सुझावों एवं कार्य विधि या एक्शन से पूरित होते हैं।
कमजोर इच्छाशक्ति या फिर इच्छाशक्ति हीनता व्यक्ति को निर्णायक फैसले लेने में असमर्थ बनाती है। वह उन फैसलों को क्रियान्वित भी नहीं कर सकता है जिन्हें उसने स्वयं लिया है अथवा जिन फैसलों के लिए उसने स्वयं अपनी सहमति व्यक्त की है।

जीवन में इच्छाशक्ति अथवा ‘विल पावर’ का बहुत महत्व है। इसके अभाव में सफलता, सुख, आनंद और संतोष जीवन की परिधि से कहीं दूर चला जाता है। व्यक्ति गुमनामी में सफर करते हुए अपने परिजनों का स्नेह भी प्राप्त नहीं कर पाता। इच्छा शक्ति के सहारे वह सफलता के ऊंचे ऊंचे पहाड़ लाँघ जाता है।
इसलिए आवश्यकता है इच्छाशक्ति के स्वामी बनने की, न कि जिद्दी व्यक्ति बनने की। मुखरता भी आवश्यक है लेकिन उद्दंड मुखरता नहीं। उद्दंड मुखरता मूर्खता का पर्याय है। सद्ज्ञान का नहीं।

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