दास्तान-ए- प्रवासी परिंदे

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कड़कड़ाते जाड़े की धुंध में लिपटे वृक्षों पर जब सुनहरे सूर्य की पहली किरण दस्तक देती है तो कानपुर प्राणी उद्यान स्थित विशाल झील के इर्द-गिर्द लगे ऊँचे ऊँचे सघन वृक्षों का मौन भंग हो जाता है। खड़खड़ाहट  और फड़फड़ाहट की आवाज़ें वहाँ मौजूद मॉर्निंग वॉकर्स को स्तब्ध कर देती हैं।

एक पल भी नहीं बीतता है कि परिंदों के कलरव से आस-पास का वातावरण गूँज उठता है, सोते शेर जाग जाते हैं, उनकी दहाड़ उद्यान को झकझोर देती है, पेड़ों पर डेरा डाले तोते और अन्य पक्षी उनींदा आवाज़ में किलकने लगते हैं। देखते-देखते झील के ऊपर अनेक श्वेतवर्णी और रंग-बिरंगे पक्षी मंडराने लगते हैं।

ऐसा शीत ऋतु में प्रत्येक वर्ष होता है। क्योंकि इस ऋतु में हिमालय पर्वत के आँचल में बसने वाले ढेर सारे पक्षी हिमालय पर बर्फ गिरते ही प्रवास के लिए यहाँ चले आते है। वह प्रवास के दौरान यहाँ अपने नीड़ बसा लेते हैं, अंडे देते हैं, बच्चे पालते हैं। उनके बड़े होते ही वह उनको लेकर हिमालय की ओर चले जाते हैं।

यहाँ अपने प्रवास के दौरान वह धूप चढ़ते ही एक पर्यटक की भांति गंगा नदी के ऊपर खुले आकाश पर सैर को चले जाते हैं, घाटों पर बैठकर शिकार करते हैं, दोपहरी ढलते ही झील के किनारे अपने नीड़ को वापस आ जाते हैं।

अट्ठारह हेक्टेयर में फैली ये झील प्रत्येक वर्ष अक्टूबर से मार्च तक प्रवासी पक्षियों का आरामगाह बनती है। यहाँ रंग-बिरंगी पेटेड स्टार्क, लंबी सफ़ेद चोंच वाली ओपन बिल्ड स्टार्क, ऊन सी सफेद गर्दन व रंगीन शरीर वाली वूली नेक स्टार्क, काले सिर और सफ़ेद शरीर वाली लॉक हेडेड इबिस तथा ऐसी ही अनेक अजूबी चिड़ियों का जमघट रहता है, जो दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

यह सभी चिड़ियाँ मीलों दूर का सफर ऊंचे आकाश में उड़ते हुए तय करती है। इनमें से अधिकतर चिड़ियाँ पंक्तिबद्ध होकर अपना सफर तय करती हैं। इनकी पंक्तिबद्ध उड़ान नियंत्रित ट्रैफिक सिस्टम का जीता जागता उदहारण है। आगे वाली चिड़ियाँ इनकी संकेतक, सचेतक और संरक्षक होती है और इन्हें दिशा विहीनता से बचाती है।

=> डॉ. आर. के. सिंह, वरिष्ठ वन्य जीव विशेषज्ञ 

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