एकाग्रचित्तता मानसिक श्रम का परिणाम है। किंतु जब सावधानी, ध्यान अवधान और मनोयोग की प्रवृत्ति एक आदत बन जाए तो मस्तिष्क को एकाग्रचित्तता की स्थिति को प्राप्त करने के लिए श्रम नहीं करना पड़ता। वह पूर्णतः मुक्त हो जाता है और अन्य बड़ी योजनाओं और परियोजनाओं में लिप्त हो जाता है।
विनोबा भावे के अनुसार यदि चित्त एकाग्र रहेगा, तो फिर सामर्थ्य की कभी कमी न पड़ेगी। साठ वर्ष के बूढ़े होने पर भी किसी नौजवान की तरह उत्साह और सामर्थ्य दिख पड़ेगी।
वस्तुतः सफलता के लिए एकाग्रचित्त का होना आवश्यक है। एकाग्रचित्त व्यक्ति कार्यों को जितनी सरलता से संपन्न कर सकता है अन्य नहीं। किन्तु एकाग्रचित्तता साध्य नहीं है। वह एक साधन मात्र है। इस साधन का जितना अधिक प्रयोग और अभ्यास किया जाए उतना अधिक व्यक्ति हर कार्य में सफल होते जाएगा। नारदपुराण में भी कहा गया है कि जिसका चित्त एकाग्र नहीं है, वह सुनकर भी कुछ नहीं कर सकता।
एक एकाग्रचित्त व्यक्ति अपने कार्यों को जिस कुशलता से संपन्न कर सकता है और आनंद की अनुभूति प्राप्त कर सकता है वह अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता, कारण एकाग्रचित्त व्यक्ति को एकाग्रता प्राप्त करने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता। उसका पूरा ध्यान अपने कार्य को संपन्न करने में लगा होता। वह एक स्वचालित मशीन की भाँति कार्य को संपन्न करता चला जाता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि एकाग्रता कुशलता की पहली शर्त है।
जबकि एक अकुशल व्यक्ति जिसमे एकाग्रता का अभाव है उसे दोहरा परिश्रम करना पड़ता है। एक ओर तो उसे एकाग्रता प्राप्त करने के लिए एकाग्र होना पड़ता है और दूसरी अपने कार्य के प्रति उसे एकाग्र होना पड़ता है। इस प्रकार उसके लिए किसी कार्य को संपन्न करना टेढ़ी खीर हो जाता है। फिर भी कार्य की सफलता पर वह प्रसन्न होता है लेकिन वह यह भूल जाता है कि उसे उस कार्य को संपन्न करने में उसे कितना श्रम और समय बर्बाद करना पड़ा।
किसी भी श्रम करने वाले व्यक्ति का मूल्यांकन इस बात से होता है कि उसने काम समय और साधनों में कितना अधिक कार्य सम्पादित किया है। कम श्रम और समय में अधिक कार्य श्रेय वही व्यक्ति ले सकता है जो एकाग्रचित्तता का धनी है, कुशल है।
एकाग्रचित्तता सफलता का प्रथम सोपान है। विश्व के सफलतम व्यक्तियों में एकाग्रचित्तता का गुण प्रधान रहा है। उन्होंने जिस भी कार्य का बीड़ा उठाया बिना इधर-उधर भटके पूरा किया। भटकन से जूझते व्यक्ति सफलता की सीढ़ियों से फिसल गए। अपनी असफलता का दोष वह अपने भाग्य को देते-देते ब्रम्हलीन हो गए।