वह भिखारी था। भूखा था। नंगा था। बेघर था। एक-दो दिन से नहीं, बरसों से ऐसे जी रहा था। पथराई आँखों से जमाना देख रहा था। भीख मांगता था। घूम-घूम कर नहीं। एक जगह बैठे-बैठे। उसे मिलते थे ईंट और पत्थर। फटकार और दुत्कार। बच्चों और बड़ों से। फिर भी वह सबको दुआ देता। उनकी खैर मांगता। कड़कती धूप हो या कँपकँपाती सर्दी। बर्फीली रात हो या सावनी संध्या। उसका एक ही ठिकाना था। एक ही साथी था। बूढ़ा पीपल का पेड़। पेड़ शाखों से टूटी-फूटी ईंटों पर एक झोपड़ी सजाई थी उसने। रात को उसके अन्दर और दिन में खुले फुटपाथ पर बैठकर दुनिया की रफ़्तार देखता था।
वह बैठता एक टेढ़ा-मेढ़ा कटोरा रखकर। आना आठ आना और कभी कुछ नहीं। अपनी श्रद्धानुसार लोग कटोरे में फेंकते और आगे बढ़ जाते। किसी को क्या सरोकार की वह उन पैसों का क्या करेगा? सरोकार था तो उसके एकमात्र मित्र को जो सुबह से रात तक उसी के साथ फुटपाथ पर बैठा रहता। वह चौपाया कुत्ता था। पैसा कटोरे में गिरता था, खुश वह होता था। चार पैसों के अलावा भी उसकी कोई आवश्यकता थी, कभी किसी को सोचने का समय नहीं मिला।
एक दिन ठिठुरते जाड़े की सुबह वह नहीं बैठा था। लेटा था। आधा शरीर झोपड़ी के भीतर और आधा खुले फुटपाथ पर। पास में वह चिरपरिचित उसका मित्र गली का कुत्ता उदास बैठा था। उस पर बैठती मक्खियों को उड़ा रहा था। चार-छः लोग भी वहीं खड़े थे। किसी ने भाव-विभोर होकर उस पर सफेद चादर डाल दी। उसके जीवन की कुरूपता को ढक दिया।
दानशील लोग इकट्ठे हुए। देखते-देखते चादर पर सिक्कों के ढेर लग गए। यह जानते हुए भी की अब उसे इन सिक्कों की जरूरत नहीं। लोग ईश्वर के नाम पर अपनी जेबों से कुछ सिक्के उस पर न्योछावर करते रहे।
कुछ देर में उसके निशान तक मिटाने की तैयारी पूरी हो गई। लोगों को भय था उसके जीवन की कुरूपता कहीं मानवता को ज्यादा कलंकित न कर दे।
भिखारी का मित्र कुत्ता अचानक रो उठा था। लोगों ने अशुभ संकेत मानकर कुत्ते को पत्थर मारकर भगा दिया। वह फिर भी रोता रहा। मानों वह पूछ रहा था – “क्या मानवता केवल सिक्कों में सिमट कर रह गई है।” किन्तु उसको उत्तर देने वाला कोई नही था। कुछ पलों में वह चुप हो गया। एक कमजोर जीवन को मनुष्य की कटुता से मुक्ति मिली थी। पुण्य का दिन था। पूण्य और पाप में उलझा मानव अविराम बढ़ता रहा। मानवता, दया, प्रेम, करुणा, सहृदयता उसके लिए बेमानी थी। यही कुछ सोचकर वह चौपाया भी अपने ठीए को अलविदा कह आगे बढ़ गया।
वह मृत भूख लावारिस भिखारी भी फुटपाथ से हटा दिया गया। फुटपाथ पर व्यवधान समाप्त हो गया। अगले कुछ दिनों तक उसका वफादार मित्र वहाँ आता रहा। कुछ देर वहाँ बैठकर चला जाता था अब उसने भी आना बन्द कर दिया था। कुछ दिन बाद फिर मुट्ठी भर लोग जमा हुए। उनका एक सपना था। वह भिखारी जो भूख से मरा था उसकी याद में वहाँ वह एक स्मृति स्थल बनाना चाहते थे। अभी उन्होंने वहाँ चार ईंट ही रखी थी कि वह अतिक्रमण के नाम पर हटा दी गई। उनको खदेड़ दिया गया। उनका सपना चूर-चूर हो गया। वह चाहते थे वहाँ एक ऐसा स्तम्भ बनाये जिस पर लिखा हो” भूखे को प्यार और रोटी दो। “किन्तु ऐसा नहीं हो सका।