एक मुलाकात-जंगल के बेताज़ बादशाह बाघ से

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घनघोर जंगल में दिल को थर्रा देने वाली वो दमदार आवाज़ और रोंगटे खड़े कर देने वाला मंज़र किसी भी निर्भीक व्यक्ति को एक पल के लिए जड़ कर सकता है। यूँ ही वे जंगल के बेताज़ बादशाह नहीं कहलाते। प्रकृति ने भरपूर समय देकर पूरे मन से गढ़ा है अपने इस बेशकीमती रत्न को। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं बाघ यानी टाइगर की। पीली और काली धारियों वाला ये माहिर शिकारी जब जंगल में अपने शबाब पर अपने सम्राज्य की गश्त पर होता है तो इसकी रौबदार चाल देखते ही बनती है। बाघों ने जैव विकास की दौड़ में अपने आपको पूर्णतः वातावरण के अनुसार ढाला है। यही कारण है कि यह समुद्र स्तर से लेकर 4000 फ़ीट की ऊंचाई तक तथा -40 डिग्री सेंटीग्रेड से 47 डिग्री सेंटीग्रेड तक के वातावरण में आसानी से रह लेते हैं।

वैसे तो चिड़ियाघर में प्रतिदिन बाघों को देखना होता है, लेकिन जंगल में गश्त करते बाघ को देखने की लालसा मुझे भी बेचैन कर रही थी। हम कई दिनों तक जंगल में टाइगर के पगमार्क, सेंट मार्किंग तथा अन्य निशानों के माध्यम से उसे ढूंढते रहे पर हर बार हमें निराशा ही हाथ लगी। बाघ अमूमन जंगल में मनुष्यों की उपस्थिति पसन्द नहीं करते व एक समझदार राजा की तरह मनुष्य को देखकर स्वयं ही रास्ता बदल देते हैं। और हाँ, आम लोगों की शंका के विपरीत बड़े विडालवंशी कभी भी अनावश्यक मनुष्य पर हमला नहीं करते। वे तीन परिस्थितियों में ही आत्म रक्षा में आक्रमण करते हैं। प्रथम-प्रजनन के दौरान, द्वितीय-यदि माँ शावकों के साथ है, तृतीय-यदि आप अनावश्यक उसकी टेरिटरी में दखल देकर उसके प्रभुत्व को चुनौती देते हैं। इसके अतिरिक्त चौथी परिस्थिति होती है- आदमखोर की, जिसमें आक्रमण की संभावना अधिक होती है। परंतु एक विडालवंशी क्यूँ आदमखोर बनता है यह एक अलग विषय है?

चलिए लौटते हैं जंगल की ओर। एक दिन तय हुआ कि शाम को बाघ को ढूंढा जाए, क्योंकि बाघ का जंगल में विचरण मुख्यतः शाम को होता है। ज्ञात हुआ कि आजकल एक बाघ प्रतिदिन पश्चिमी पहाड़ियों की तरफ के जंगलों में गश्त लगाता है। हमने उम्मीद से अपनी खुली जिप्सी को उसी ओर मोड़ दिया। इतने बड़े गहराते हुए जंगल में एक बाघ को ढूंढना कोई खेल नहीं होता। क्योंकि एक बाघ का क्षेत्र लगभग 10 से 40 वर्ग किलोमीटर तक हो सकता है। लेकिन सौभाग्य से तभी हमारे एक साथी की दृष्टि एक मरे हुए सांबर हिरण के शव पर पड़ी। पास जाने पर स्पष्ट था कि यह एक टाइगर का कई दिन पुराना किल (शिकार) था जिसपर कई अन्य मांसाहारी जानवर भी हाथ साफ कर चुके थे। क्योंकि बाघ अपने शिकार के पास कई बार लौटता है, इसलिए हमें विश्वास हो गया कि वह ज़रूर यहाँ आएगा।

मैंने बाघ के मूवमेंट के प्रमाण देखने के लिए जंगल की पगडण्डी को देखना प्रारम्भ किया। शाम के ढलते सूरज में सोने के प्रकाश से नहाया जंगल, कुलांचे मारते हिरण व दूर क्षितिज तक पक्षियों के हुजूम का वह दृश्य किसीको भी मन्त्रमुग्ध कर सकता है। इसी बीच एक सांबर हिरण की एक विचित्र आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह एक आलार्मिंग कॉल थी वह अपने सभी साथियों को किसी खतरे से सावधान कर रहा था। कच्ची सड़क के किनारे चर रहे चीतल भी जब अपने पैर पटक कर अन्य साथियों को खतरे का संदेश देने लगे तो हमारे भी सावधान हो जाने की बारी थी। हम सब अविलंब अपनी खुली जिप्सी में बैठ गए। लेकिन बाघ का अभी भी कोई अता पता नहीं था, परन्तु बारम्बार आती आलार्मिंग कॉल व साम्बरों की ऊपर उठा पूंछ निश्चित रूप से बाघ के होने का संकेत थी। हमारा रोमांच चरम पर था।

इस बीच लँगूरों के झुंड ने पास के पेड़ों पर उछल कूद प्रारम्भ कर दी। स्पष्ट था कि जंगल का राजा उसी पेड़ के आसपास था। लेकिन अब तक इस माहिर शिकारी ने स्वयं कोई भी संकेत नहीं दिया था। एक के बाद एक पेड़ों से चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ रही थी। मतलब बाघ आगे बढ़ रहा था औऱ साथ ही साथ हमारी जिप्सी भी। तभी एक शानदार आवाज़ ने जंगल को गुंजायमान कर दिया। पास की झाड़ियों से आती वो आवाज़ रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। अब हम किसी ऐसे स्थान की तलाश में थे जहां से बाघ को स्पष्ट देख सकें। तभी पगडण्डी के किनारे एक पानी का सोता देख हम रुक गए। हमारे अनुभव के अनुसार पानी के सोते के पास यदि बाघ है तो निःसंदेह वह पानी पीने अवश्य आएगा। हम कुछ ही दूरी पर अपनी जिप्सी में शांत रुक गए, जिससे कि वह पानी पीने आ सके। उस शांत वातावरण में भी सबके दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं, अज़ब सा आकर्षण था उस शांति में।

तभी झाड़ियों में हलचल हुई औऱ हमारे सामने जंगल का बादशाह अपने पूरे शबाब के साथ शाम के धुंधलके को चीरता हुआ प्रकट हो गया। क्या खूब रोमांच था उस विडाल वंशी में। जरा भी विचलित नहीं हुआ वो दो क्विन्टल का टाइगर हमारी उपस्थिति से। हो भी क्यों आखिर ये उसका साम्राज्य था। हम पृथ्वी के सबसे शक्तिशाली विडालवंशी को अपलक निहारते रहे। खुले जंगल में बाघ से आमना सामना अकल्पनीय रोमांच पैदा करता है। गहराते धुंधलके में कब पानी पीकर अचानक ही वह कहाँ खो गया, कोई समझ न सका। लेकिन ज़िंदगी भर ना भूलने वाला वो मंज़र आज भी जब मनो मष्तिष्क पर ताज़ा होता है तो बरबस एक बार और किसी बाघ अभ्यारण्य (टाईगर रिज़र्व) जाने की लालसा को रोक पाना असंभव सा हो जाता है।

=> डॉ. आर. के. सिंह, वरिष्ठ वन्य जीव विशेषज्ञ 

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