मानव मन में हिलोरे लेने वाली अनगिनत भावनाओं और कल्पनाओं का संगम इच्छा है। चूंकि भावनाएँ ओर कल्पनाएँ अगाध और अपार हैं इसलिए इच्छाएँ भी अनंत हैं। न तो सभी इच्छाओं की गणना की जा सकती है और न ही इन सभी को पूरा किया जा सकता है। केवल वे ही इच्छाएँ पूर्ण हो पाती हैं जिन्हें पूरा करने के लिए हम अपने अंतःकरण में दृढ़ संकल्प और दृढ़शक्ति का संचार कर लेते हैं। यह दृढ़ संकल्प और दृढ़ शक्ति इच्छाशक्ति को जन्म देते हैं। इच्छा शक्ति मनुष्य का क्रियात्मक चरित्र है। जीवन का एक उद्देश्य इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाना है। इच्छाशक्ति अंतः मन की वह ऊर्जा है जो भावना और कल्पना के सुनहरे पंखों पर उड़ान भरती इच्छाओं को प्राप्त करने में सहायता करती है। इच्छाशक्ति का निर्माण एकाग्रचित्त होकर ध्यानावस्था की चरम सीमा पर पहुंचकर किया जाता है। इच्छाशक्ति स्वस्थ और दुर्बल भी हो सकती है।
स्वस्थ इच्छाशक्ति व्यक्ति को निर्माण, विकास, लोककल्याण और परमार्थ की ओर अग्रसर करती है। उसे अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु कठोरतम श्रम और प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। उसे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने में सहायक होती है।
जबकि दुर्बल इच्छाशक्ति व्यक्ति को असफलता के अंधकार की ओर ले जाती है। उसे लक्ष्यहीन, असहाय, अशक्त और परजीवी बना देती है। दुर्बल इच्छा पराभव का पर्याय है।
स्वामी रामतीर्थ के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी समस्त ऊर्जा को एक बिंदु पर केंद्रित करके सुगमतापूर्वक एक स्वस्थ इच्छाशक्ति का निर्माण कर सकता है। यह इच्छाशक्ति व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता प्रदान करने के साथ उसे विराट का सानिध्य प्राप्त करने में सहायक होती है। उनके अनुसार परमात्मा तो यहाँ तक कहते हैं कि मांगने का यह संस्कार ही समाप्त करो और आत्मिक स्वाभिमान में रहकर मुझे याद करते श्रेष्ठ कर्म करते चलो, क्योंकि तुम भिखारी नहीं, सम्राट हो, ईश्वर पुत्र हो। वस्तुतः यही वह शक्ति है जो लौकिक और पारलौकिक जीवन में व्यक्ति को सफलता के पायदान पर ले जाती है और व्यक्ति को विराट से मिलाती है। दृढ़ इच्छाशक्ति से व्यक्ति अनहोनी को भी होनी में बदल देता है। जीवन में सफलता का सबसे बड़ा आधार है दृढ़ इच्छाशक्ति।
आपके विचार सकारात्मक हैं। मैं आपसे सहमत हूँ।
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