समझौता

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समझ और समझौता एक सिक्के के दो पहलू हैं। समझौता जीवन का पथ है। समझ जीवन पथ को सुगम बनाने का सशक्त माध्यम है।
जीवन पथ अनेक दिशाओं से गुजरता है। कहीं टेढ़ा कहीं सीधा और कहीं दुविधामय भी होता है, यह पथ। किन्तु प्रत्येक दशा में व्यक्ति को इससे गुजरना होता है। आगे बढ़ना होता है। सपनों को अंजाम देना होता है। मंजिल को पाना होता है।
जहाँ तक जीवन पथ सीधा, सरल, सहज और अवक्र निर्दिष्ट होता है, जीवन यात्रा में व्यवधान नहीं आता है। उस पथ पर चलते रहने की समझ भर जरूरी होती है। समझ अथवा बुद्धि को नकार कर, सहज व सरल जीवन पथ पर भी चला नहीं जा सकता। क्योंकि निर्णय लेने का अधिकार बुद्धि या समझ के हिस्से में आता है। निर्णय के अभाव में जीवन की कोई भी क्रिया न केवल अपूर्ण रह जाती है अपितु वह अनर्थकर और आपाती हो जाती है। जीवन यात्रा अवरुद्ध हो जाती है। जीवन में गति बनी रहे इसके लिए व्यक्ति को बुद्धि या अपनी समझ की आवश्यकता होती है। उसके निर्देशों का पालन करने हेतु किसी मध्यममार्ग या समझौते का सहारा लेना पड़ता है। अपने अहं को त्याग कर बुद्धि या समझ के शरणागत होना पड़ता है।
समझ या बुद्धि में दूरदृष्टि निहित होती है। जीवन-पथ कड़वी सच्चाई होता है। कड़वी सच्चाई का घूँट यदि समझ बल के सहारे लिया जाए तो जीवन लक्ष्य का पाना सरल हो जाता है। समझ का सहारा लेना एक समझौता है। इस समझौते को करना पड़ता है।
इससे विरत होकर जीवन का अस्तित्व पागलखाने की चहारदीवारी में सिमट कर रह जाता है। समझ से समझौता पूर्ण एकांकी होता है। एक पक्षीय होता है। व्यक्ति स्वयं इस समझौते का मसविरा तैयार करता है। अपने बुद्धिबल या समझ को प्रस्तुत करता है और उसके निर्देशों का पालन करता है। इस समझौते में वह किसी की सलाह नहीं लेता। उसकी बुद्धि या समझ ही उसकी एकमात्र सलाहकार होती है।
समझौते की सफलता बुद्धि की परिपक्वता एवं उनमें निहित दूरदृष्टि गुण पर निर्भर करती है। यह जरूरी नहीं कि अपनी समझ से लिया गया प्रत्येक निर्णय उचित हो और सफलता के पायदानों पर अग्रणी हो।। स्थिति इसके विपरीत भी हो सकती है। फलस्वरूप जीवन पथ दुर्गम हो सकता है। दुविधामय हो सकता है। स्थितियाँ व परिस्थितियाँ विकट हो सकती हैं। उनको उनके उसी रूप में स्वीकार करके जीवन यात्रा को प्रारंभ नहीं किया जा सकता।
परिस्थितियों से जूझने और उनको अपने अनुकूल बनाने के लिए समझ के सहारे उनसे समझौता करना पड़ता है। परिस्थितियों से जुड़े अनेक अवयवों से भी समझौता आवश्यक हो जाता है। परिस्थितियों के विभिन्न अवयवों में प्रकृति, समाज एवं भावना जनित प्रभाव सन्निहित होते हैं।
प्रकृति जनित परिस्थितियों के कोप का सामना तो वेट एण्ड वाच (प्रतीक्षा करो और देखो ) की नीति पर ही चलकर किया जा सकता है। समाज जनित परिस्थितियों का सामना उन व्यक्तियों से समझौता करके किया जा सकता है जो उसके लिए जिम्मेदार हो। इसमें सगी-संबंधी और मित्र-मंडली के सदस्य प्रमुख होते हैं। उनसे मिल बैठकर समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। मिल बैठकर समाधान निकालना समझौते की एक प्रक्रिया है। यह समझौते सामान्यतः दो या तीन पक्षों के मध्य होते हैं। प्रत्येक पक्ष को अपनी कतिपय आकांक्षाओं को या अपने पूर्व निर्णयों को समझौते की वेदी पर होम करना पड़ता है।
इसके विपरीत भावना जनित समस्याएँ जैसे क्रोध और प्रेम के समाधान में व्यक्ति को स्वयं परिस्थितियों के अनुरूप अपनी भावनाओं से समझौता करना पड़ता है। कोई हल निकालना होता है। भावना जनित समस्याओं में दूसरों की सलाह से अधिक व्यक्ति की अपनी समझ और समझदारी कारगर सिद्ध होती है।
जहाँ समझौता दर्शन जीवन यात्रा को सुगम बनाता है वहीँ यह जीवन में आने वाली महाविपत्ति या विध्वंसात्मक स्थितियों से सुरक्षा प्रदान करता है। किंतु बुद्धि या समझ के अभाव में किया गया कोई भी समझौता सार्थक सिद्ध नहीं हो सकता। समझ की दूरदर्शिता ही समझौते की सफलता की पहली सीढ़ी है।

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