दूर कहांँ हो तुम

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[avatar user=”Seema Shukla” size=”98″ align=”left”]Seema Shukla[/avatar]

दूर कहांँ हो तुम….
स्मृतियांँ अमिट हैं…
और अनुभूतियांँ अवर्णनीय…
दूर कहाँ हो तुम …
स्वयं मुझ में प्रतिबिंबित हो..
मैं जा रहा हूंँ..
कहकर मुझे छलते हो ..
तुम जा रहे हो …सोचकर ..
मैं आत्म प्रवंचना करती हूँ
दूर कहाँ हो तुम ….
जैसे शब्द अपना अस्तित्व ,
शतकों तक रखते हैं.
ऐसे ही
कुछ क्षण के लिए ही सही
दो हृदयों के,
मिलन का बंधन भी..
युग – युगांतरों तक
अटूट रहता है ..
ये उस दृढ़ डोर का बंधन है..
जो प्रेम से बनी है
और प्रेम
ईश्वर की तरह शाश्वत है
तो तुम ही कहो दूर कहाँ हो तुम…!

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