[avatar user=”Seema Shukla” size=”98″ align=”left”]Seema Shukla[/avatar]
बहुत बार पढ़ना चाहा है,
तुझे ज़िंदगी..
देखा है तेरा ,
मुक़द्दस बुत सा चेहरा …
दो चमकीली पत्थर से आँखें..
जो हैं ख़ामोश….
बेमतलब सी..।
जैसे कि पत्थर समेटे हैं ,
सदियों के राज़ खु़द में..
पर हैं खामोश ..एकदम !
बहुत बार पढ़ना चाहा है ..तुझे..
काश ! कि मैं छेनी से..
कु़रेदकर जान लेती ..
बंद ज़ुबान का राज़ …
उसी तरह …
जैसे खुलते हैं ,
तारीखो़ के कि़स्से ..
पत्थरों में…
बहुत बार पढ़ना चाहा है,
तुझे जिंदगी ..
काश ! यह बुत -ए- ज़िंदगी…
महज़ तसव्वुर ना होता….
पत्थर होता ..
जिसे छुअन से ,
महसूस करती ,
तो शायद ..
छेनी उठाने की हिम्मत भी करती..
पर……
बहुत बार पढ़ना चाहा ..
तुझे जिंदगी।